SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर २०१० १०१ भक्तामर पादपूर्तिरूप स्तोत्रमा काव्यतत्त्व विशिष्ट न होवा छतां कविनी कल्पनाशक्ति अने भाषासज्जतानी दृष्टिए नोंधपात्र छे. पाठमां थोडी अशुद्धता छे - लो० रत्नं अशुद्ध शुद्ध मिथ्यात्व याति मिथ्यात्वयेति रत्र रोषो दिवेति रोषादिवेति द्विदेव (?) ०द्विपदेव रंही रंह्रौ करतलं करतले भुवनभूषणकाव्यमां बे वाचनभूलो रही छे. पृ. ५३, श्लो० ८ मां 'त्तस्थ' छे त्यां 'त्तस्य' अने पृ. ५३, श्लो० २ मां 'गतां' छे त्यां 'गन्ता' जोईए. धर्मरत्नदुर्लभत्वम् अने त्रिभाषामयी श्री नेमिसूरीश्वरस्तुति- आ बन्ने अर्वाचीनकालीन कृतिओ छे, अने तेथी पाठशुद्धि जळवाई छे. कर्ता- वैदुष्य स्वयं प्रकाशित छे. 'एक विज्ञप्तिपत्र' शीर्षक नीचे प्रकाशित रचना अनेक रीते रसप्रद छे. राधनपुर अने जोधपुर - ए बन्ने नगरोनुं रोचक वर्णन, त्यांना जैन संघोनी स्थिति, चातुर्मासनी प्रवृत्तिओ, गच्छपति श्रीपूज्य आचार्योनुं वर्चस्व, तत्कालीन समाजजीवन आq घणुं बधुं आ रचनामांथी तारवी शकाय छे. गुजराती अने मारवाडी भाषानुं तात्कालिक स्वरूप पण आमां सचवाई रयुं छे. आ विज्ञप्तिपत्रना लेखक अर्थात् लिपिकार रिदयराम कलम्बी होवानुं सम्पादक जणावे छे परन्तु तेम नथी. वि. पत्रना रचयिता मनरूपविजयजी छे, एमणे ज राधनपुरनी गजल रची छे जेमां कुलम्बी रिदैरामनी प्रशंसा करवामां आवी छे. आ गजल १९६२ना मागशरमां रचाई छे अने ए ज वरसना फागण महिनामां लखाएली विज्ञप्तिमा ए गजलने समावी लेवामां आवी छे. लिपिकार कोई अन्य लहियो होई शके.
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy