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________________ डिसेम्बर-२००९ ७९ छिब चउ वर्ण पवन छत्तीस, वदहू नाम विस्वावीस । क्षत्री वणिक विप्र ही खास, वसते आपकै आवास । कायथ किते है के वास, देवीपूज प्रभू के दास । सोनी जाट छिपा सूद्ध, करते काम अपनी बुद्ध । नाप कल्वार खाती नूर, अपनै काममै भरपूर । डमगर सीसगर दरसावू, तेली तंबोली बहु चावू । भाखु कल्लालहीका भेद, खाटै द्रव्य न करै खेद । वलि तिहां अन्य बहु वसती क, इहां तो कहीये ऐती क । बणीया सेहर कोट बणाव, देखै दोयण न लगै डाव । अति विस्तार है उत्तंग, करते शत्रूको मनभंग । पाहड अनड पंचैट्या क, भुजबल भीमकुं भेट्या क । ज्वालामुखी देवी जोत, अहोनिस रहत है उद्योत । सहरबारकी सोभा क, अब कहूं सुनो नर दिल पाक । सीतल नीर सागरसूर, सागरबखत बहू जल पूर । बालही समदका वणाव, पंडित देख तिहां धर पाव । है तिहां महिल है मोटाक, लागै द्रव्य लख कोटा क । वणीया तिहां अद्भूत बाग, छोगा छयल घालत पाग । तिणमै अंब दाडिम दाख, तरवर विस्तरै बहु साख । पीपल वड ही बहु परचंड, तिनकै बहुत है वनझुंड । मेला मंडत है मोटा क, नांणा चलत नही खोटा क । इक है राई का आराम, देखत सरत सब ही काम ।। रुडा देख रतन[त] डाक, खग तिहां रहत है खडा क । जालिम देवता राजे क, गणपति नाम ही गाजे क । सेखावत्त सरवर सार, पांणी भरै है अणपार । अखयसागर अखैराज, सिंघवी करायो सिरताज । कागावागकी कीरत्त, सहू नर कहै सुणज्यौ सत्त । उसमै चीज है चित चाह, लायक नरह लै जू लाह । मंडोवरह अतिमोटे क, कायम सहर नव कोटे क । बाजै पवन छत्तीसे क, दर्शन खट तिहां दीसे क । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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