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________________ ८० अनुसन्धान-५० वड वड बागका विस्तार, इधकै फूल फल अणपार । . कहीयै देव तेतीस कोड, ठावा लाभ ते इकठोड । देवल बहुत भी देख्या क, परगट कोट गढ पेख्या क । भैरूं जिहां है भारी क, पूजन पाव नरनारी क । पारसनाथकै परसाद, झलर नगारूंकै नाद । श्रावक अवर नर सोभा क, लायक सुनो तज लोभा क । सरवर बहुजीका शुद्ध, देख्या नीर जाणै दुद्ध । सिंघवी भंडारी मुंहणोत, मुंहता खीवसरा भलजोत । सांडज सांखला मणिमाल, गोघड गोलीया भंडसाल । डोसी सरस फोफलीयाक, संचीती खांप रूवटीआक । नाहर गोत सुरांणाक, पटवा सुंदरु वरणाक । भुरट हुंजांण श्रीश्रीमाल, धरते धरमकी चित चाल । आहोर वसत अखैचंद, लायक धर्म लहरी समंद । मांनत भूप वडही भाग, अपनै देवगुरु अनुराग । फबते फूटरै रिधकरण, मनहर मुंहते मालकरण । मुंहता गोत है भंडसाल, वनजी चोधरी उजमाल । देहरै पासरै बहु खास, करते सराप किसनदास । सबही नगरका वरणाव, गुणीयण कह्या गुरु सुपसाव । संवत अढार इगसठ आंण, वदीया मास आसु वखांण । पडिवा सुकल परव ही पेख, मनरूप कही लग नही मेख ॥१॥ ॥ ढाल बिंदलीनी ॥ प्रणमुं सरसती पाया, गुण गावं गच्छपति राया हो । सदगुरु अरज सुणो । अरज अम्हारी अवधारो, तो जोधांणै नगर पधारो हो । सद० अरज० ॥१॥ मरुधर देश छै मोटो, जसै अनधनरो न ही तोटो हो । सद० । जठै नगर जोधांणो राजै, ओतो अलिकापुरी सम छाजै हो । सद० अरज० ।।२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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