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________________ ७३ डिसेम्बर-२००९ पैसठ जंबूद्वीपनै, रविमंडलनां जाण । छासठ सहस्र श्रेयांशना, साधु चारित्र वखांण ||७|| || ढाल - निंदडली हो वैरण होय रही - ए देशी ॥ सतसठ साता कर्मना विध्वंसण हो म्हारा गणराय क । अड़सठ कालप्रकासक स्वामीना हो नित नमतां पाय क । भविजन वंदो भावसुं ॥१॥ उगणोत्तर कर्मभेदना जांणक पररूपक छौ गुरुदेव क । सितर कोडाकोडनी मोहनीना हो टालक करुं सेव क। . भवि० ॥२॥ एकोत्तर पूरव लाखथी गृहवासै हो वसीयाऽजितनाथ क । जांणक छौ तेहना तुम्है, बहोत्तर हो नरकला विमात क । भवि० ॥३॥ तिहत्तर लाख बलदेवना, भुवनांना हो ज्ञापक स्वामी नाथ क । चिहत्तर वरस अग्निभूतना गणधर आउखाना गुरु गाथ क । भवि० ॥४॥ पंचोत्तर सुबधितणा, केवल आउखाना उपदेशक । छिहोत्तर लाख विद्या(द्युत)तणा, भुवनांना ज्ञापक छौ गुरु पेशक । भवि० ॥५॥ सित्तोत्तर एकीकना, मुहुर्ते हो लवणना जांणक । अठंतर गणधर आयु, अकंपित हो नित प्रति वखांणक । __ भवि० ॥६॥ सहस उगण्यासी जोयण, गढ जंबूने अंतरना जांणक । असी सहस ईशानना, देवलोकें हो सामान्य क्खांणक । भवि० ॥७॥ सहस इक्यासी भिखुतणा, उपदेशक छो गिरूवा गणराय क । ब्यासी रात्र देवानंदने, कूखै रहीया हो महावीर जणाय क । भवि० ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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