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________________ ७२ अनुसन्धान-५० चमालीस लाख धरणेंद्रना हो भुवनांना ज्ञापक स्वामिजी । __ म्हारा सदगुरु श्री गणराय ॥१|| पैतालीस आगमसूत्रना हो उपदेशक स्वामी छौ तुम्है । छैतालीस लिपना जाण । सैतालीस जोयण हजारै हो सूरज मंडल परकाशक । म्हारा० ॥२॥ अडतालीस सहनै हो वर पाटण चक्रवत्तिना । घण वंदण छौ गणराय । गुणपंचास दिनांना हो भिखु पडिमाना उपदेसक । म्हारा० ॥३॥ पंचास धनुष सरीरे हो जिन अनंततणा उपदेसक । एकावन उद्देशन काल । बावन जिन परसादै हो उपदेशक श्री गणरायजी । म्हारा० ॥४॥ त्रैपन साधु वीरना हो अनुत्तर पोहता तेहना । उपदेशक स्वामि सधीर । चोपन दिवसां नेमी हो उपदेशक छौ छदमस्थना । म्हारा ॥५॥ ॥ दूहा ॥ पंचावन अध्ययनना, वीरें रात्रे कीद्ध । तेह तणा पररूपक, छौ स्वामी सुप्रसिद्ध ॥१॥ छपन नक्षतर अछ, जंबूद्वीप विचाल । ज्ञापक छौ गुरूजी तुम्है, सद वस्तै ततकाल ॥२॥ सत्तावन संवरतणा, उपदेशक गणराय । प्रकृत अठावन ज्ञाननी, उपदेशक मुनिराय ॥३॥ गुणसठ एकीक निशि, चंद्र संवच्छर जांण । साठ सहस लवणाब्धिने, विषयै नाग वखांण ॥४|| इगसठ छपन भागना, चंद्रमंडलना जांण । बासठ प्रतरा तणा तुम्है, जांणक छौ गुणखांण ॥५॥ त्रेसठ शलाका पुरुषना, जांणक छौ गच्छेश । चोसठ इंद्रनै वंदनीक, छो स्वामी सुविसेस ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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