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________________ ७४ अनुसन्धान-५० व्यासी गणधर शीतलनाथना, उपदेशक छो चउरासी लाख क । पूरव थित आदिनाथनी, पंच्यासी हो आचारंग शाख क । भवि० ॥९॥ छ्यासी सहस्र सुबुद्धीना, गणधरना हो स्वामी उपदेशक । सत्याशी कर्मप्रकृतिना, उत्तर परकरतीना सुविवेसक । भवि० ॥१०॥ अठ्यासी चंद्रपन्नत्तिना, सूरपन्नतीनै विषयै उपदेशक । निव्यासी सहस्र श्रीशांतिनी, साधवीना हो जांणक गुरुपेशक । . भवि० ॥११॥ नेउ गणधर श्री अजितना, एकांणुं श्री कुंथुना ज्ञान क । जांणक बांणुं वरसना, गोतम गणधर आयुनो मांन क ।। भवि० ॥१२॥ त्र्यांणुं गणधर चंद्र प्रभूना, चोराणुं श्री अजितना ज्ञान क । जांणक छो तेहना तुम्है, पंचाणुं गणधर पार्श्वना मांन क । भवि० ॥१३॥ छिन्नु कोड चक्रवर्त्तिना, पायकना हो जांणक गुरुराय क । सत्ताणुं कर्मप्रकृतिना, अठांणुं ऋषभना पुत्र वराय क । भवि० ॥१४॥ निवांणुं पूरव शत्रुजय, समवसरीया हो श्री आदिनाथ क । शततारक नक्षत्रना, पररूपक जांणक श्री सिद्धगाथ क । भवि० ॥१५॥ इकडोतर परीयां तणा, कुलदीपक जांणक छौ गुरुदेव क । बीडोत्तर बहु गुण करी, तीडोत्तर हो चीडोत्तर शाख क । भवि० ॥१६॥ पिचडोत्तर भाषा तणा, छीडोत्तर हो कायाना रंग क । सप्तोतर माया वली, अष्टोत्तर हो जपमाला जापक । भवि० ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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