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________________ डिसेम्बर-२००९ एक विज्ञप्तिपत्र सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय भूमिका शिष्यपरिवार अथवा संघ द्वारा गुरुभगवन्त प्रत्ये लखायेला विज्ञप्तिपत्रोनां साहित्यिक मूल्य अने ऐतिहासिक महत्ता विशे अनेक स्थळे घj घणुं लखायु होवाथी, आ भूमिकामां तेनुं पिष्टपेषण नहीं करता फक्त विषयदर्शननो ज उपक्रम रखायो छे. प्रस्तुत विज्ञसिपत्र सं. १८६२मां जोधपुरथी श्रीमनरूपविजयजीए, राधनपुर बिराजमान तपगच्छपति श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिजीने पाठव्यो छे. चातुर्मासनी विनन्ति सम्बन्धी आ पत्र श्रीसंघवती लखवामां आव्यो छे. पत्र संस्कृत अने गुजराती भाषामां लखायो छे. घणे ठेकाणे 'इकलास, जिंद, सिफत' जेवा अरबी-फारसी शब्दो पण वपराया छे. पत्रमा गजल, ढाल, दूहा, छप्पय, कवित्त, सज्झाय जेवा विविध काव्यप्रकारो प्रयोजाया छे. काव्यशैली अत्यन्त प्रासादिक छे. पत्रमा सौप्रथम संस्कृतश्लोकोथी श्रीआदिनाथ व.नी स्तुति करवामां आवी छे. त्यारबाद गुर्जरभाषामां काव्यरचनानो प्रारम्भ करता मंगल तरीके पंचजिननी स्तुति करवामां आवी छे. त्यारपछी दूहाओमां राधणपुरनुं सुन्दर वर्णन करवामां आव्युं छे. . विज्ञप्तिपत्रोमां गुरुस्तुति अने विविध बाबतोनुं वर्णन- ए बे मुख्य वातो होय छे. तदनुसार आमां पण त्रण ढाल अने वच्चे दस दूहा द्वारा विजयजिनेन्द्रसूरिजीनी स्तुति करवामां आवी छे. १थी मांडी १०८ सुधीना अंको आ स्तुतिमां प्रयोजाया छे. अंकयोजनानी आ परिपाटी बहु जूनी छे. आमां कोई पण प्रकारे अंकोने योजवा-ए ज मुख्य लक्ष्य बनतुं होवाथी, क्यांक काव्यतत्त्व न जळवायुं होय एम पण लागे. प्रस्तुत योजनामा घणा जैनधार्मिक पदार्थो उपयोगमां लेवाया छे, तेथी तेने समजवा जैनशास्त्रोनुं ज्ञान जरूरी बने छे. त्यारपछी आवेली जिनेन्द्रसूरिजीनी लांबी बिरुदावली अने तेमना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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