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अनुसन्धान-५०
सत्संगी श्रावक-श्राविकाओनी प्रशंसा मनने आकर्षे एवी छे. दूहाओमां करेलुं मरुधरदेशनुं वर्णन पण सुन्दर छे.
पण कविनी मोहक काव्यकलानी चमत्कृति तो हवे आवती गजलमां बराबर अनुभवाय छे. प्रथम दूहा अने कवित्त अने त्यारबाद लगभग १०० जेटली कडीओमां पथरायेली गजलचाल खरेखर मध्यकालीन - गुर्जर - काव्यकृतिओमां अग्रपंक्तिमां आवे तेवी छे. जोधपुर नगरनुं वर्णन ए आ गजलनो मुख्य विषय छे. आ गजलमांथी ऐतिहासिक माहिती पण घणी तारवी शकाय तेम छे. जेमके - ते समये जोधपुरनो राजा मानसिंघ हतो, ते जालंधरनाथनो भक्त हतो, जोधपुरमां जालंधरनाथनुं देहरूं हतुं वगेरे. आ पछीनी जोधपुरवर्णननी ज ढाल पण कविने यश अपावे तेवी छे. त्यार पछीना दूहा कविरचित नहीं पण लोकप्रचलित लागे छे. आनी साथे गुरुगुणकीर्तननुं संस्कृतभाषामय एक अष्टक पण कविए रचीने मूक्युं छे. अने त्यारपछीनी राधणपुर-नगरवर्णननी गजल तो काव्यकलानो उत्तम नमूनो गणी शकाय .
आटले सुधी तो वर्णनमात्र ज छे. पत्रनो मुख्य भाग तो हवे आवे छे. आ भाग सम्भवतः संघे पोते लखेलो छे. अक्षरो थोडा वांकाचूंका होवाथी ओळखवा मुश्केल छे. केटलीक जग्याए अर्थ पण बराबर समजातो न होवाथी संशोधन करवुं अघरुं छे. पं. मनरूपविजयजीना चोमासाथी खुश थयेला संघे तेमने ज बीजीवार चोमासुं राखवानी विनन्ति करी छे. वखतविजयजी सम्बन्धित कोइक प्रश्न पण उकेलवानी संघनी विनन्ति छे. आ पछी जिनेन्द्रसूरिजीनी सज्झाय छे, जेमां तेओने जोधपुर पधारवानी विनन्ति करवामां आवी छे. त्यारबाद दूहाओमां जिनेन्द्रसूरिजी साथे स्थित पूज्योने नामग्रहणपूर्वक वन्दना करवामां आवी छे.
छेले पं. मनरूपविजयजी वगेरे मुनिओनां नाम अने संघना मुख्य श्रावकोनां नाम आपवामां आव्यां छे. अने त्यारबाद जैनपरम्परामां गुरुवन्दन माटे प्रयोजातो अब्भुट्ठिओ सूत्रनो पाठ लखवामां आव्यो छे. अत्रे आ पत्र सम्पूर्ण थाय छे.
श्रीपूज्य श्रीविजयजिनेन्द्रसूरि श्रीविजयधर्मसूरिजीना पट्टधर हता. तेओ वि.सं. १८४९ थी १८८४ सुधीना कालमां तपगच्छना अधिपति हता तेव
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