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________________ १३२ अनुसन्धान-५० रजुप्रज्ञा मुनी एनि कहीइ (होइ) वरत धरइ ते च्यार । पंचवरण चीवर वण मानि सचेलकलप नर सार हो जी ॥२२॥(२४) बि प्रतीक्रमण कह्यां जिनशाशनि दूषण लागि करता । घणो काल रहइ मुनि एक थलि दोष लही रहइ फरता ।।२३।।(२५) मलीइं नव तत्त्व प्रकाशां त्रीण तत्त्व पणि भाख्यां । सतरभेद संयमना भाख्या च्यार सामाईक दाख्यां हो जी० ॥२४||(२६) आवश्यक षट जीनशासनमाहिं धर्मभेद कह्या चार । दोय भेद धर्मना कहइ तो श्रावकनां व्रत बार हो जी० ॥२५॥(२७) चारीत्र त्रणी कह्या तेणइ थानकी आठ मास तप सार । ऊपकरण जिन सोय प्रकासइ जीनकलपीनिं बार । होजी० ॥२६।।(२८) थीवरकलपनि चऊद प्रकाशां अजीआनि पचवीस । अस्यो पंथ प्रकासइ स्वामी व्याहार करइ जगदीस हो ॥२७॥(२९) देवदुक्ष एक लक्ष सोवन, सदाकाल ते होई । ऊपसर्ग नही ए त्रीननि एकुं परमादकाल न कोई । होजी० ॥२८॥(३०) अढार दोष नही जीन पासई वाणी गुण पातीस । प्रातीहार आठइ नीति होई अतीसहि जस चोतीस हो जी ॥२९॥(३१) || ढाल ॥ ॥ तुगीआगिर सीखरि सोहइ ॥ (राग परजीओ) ॥ चोतीस अतीसहि मल्ली केरा प्रथम रूप अपार रे । स्वेद मल नही रोग अंगि देह सुगंधी सार रे ॥३०॥ (३२) चोतीस अतीसहइ मल्ली केरा । आचली । सास निं ऊसास सखरो ऊजल आमिष सार रे । रूधीर जिन गोखीरधारा अद्रीष्टि आहार नीहार रे । चो०॥३१॥(३३) कोडाकोडि सुर मर्नु पसुआ जोयनमाहिं समाय रे । वाणि जोयन लगि सुणीइ बुझइ सुरनर गाय रे ||चो० ॥३२।। (३४) भामंडल जीन पूठि प्रगट्युं रविमंडलथी सार रे । जोअण सवासो लगइ भाई रोग नही ज लगार रे |चो०॥३३।।(३५) वइरवीरोध नही मानुवमनुमा बइसइ गज निं गाय रे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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