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डिसेम्बर-२००९
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सातइ ईत माहां नहीअ कोए मारी मरगी जाय रे ॥चो०॥३४॥(३६) अतिवृष्टि अनावृष्टी नही जगि दुरभख्य रे । भि नही स्वचक्र-परनो श्रीजिनगुण तुझ लख्य रे ||चो०॥३५॥(३७) धर्मचक्र आकाशि चालइ चामरधर सुर ईस रे । रत्न सीघासण पादपीठो छत्र वर्णि तुह सिस रे ॥चो०॥३६॥(३८) ईद्रध्वज आकासि उंचो कमल नव जिन पाय रे । रूप कनक निं रत्नमणिमिइ रचइ गढ सुर राय रे ।चो०।३७॥(३९) समोसरणि चोरूप सुदर अशोखतरूअ भजंत रे । अधोमुख ते कहुं कंटीक सकल वीरख नमंत रे ।चो०॥३८॥(४०) दुदुभी आकाशी वाजइ अनकुंल वाइ वाय रे । परदक्षण पंखीआ देता शुकन बोलता य रे ॥ चो०॥३९॥(४१) गंधोदक होइ पुफवीष्टी पंचवर्ण फूल रे । देव ढीचण लगइ रचता जोअण एक असुल रे ।चो०॥२४०॥(२४२) डाढी मुछ नख केस न वधइ अणहुतइ सुर कोडि रे । रति छइ अनकुल इंद्री नमु जिन कर जोडि रे ||चो०॥४१॥(४३)
॥ दूहा ॥ अतीसहइ बहु जनवर तणा मल्या देह शुभ अंश । काशप गोत्रे उपनो ईक्ष्याग जेहनो वंश ॥४२॥(४४)
॥ चोपई ॥ वंश वेडी मलि जिनराय सुरगति पामइ मातपीताय । महिंद्र देवलोंक चोथु य्याहि सुरनां सुख भोगवतां त्याहिं ॥४३॥(४५) कुबेर जक्ष जिन सेवइ पाय वेरुट्टा जक्षणी गुण गाय । ए श्री जिनवरनो परीवार जिन करता जगनि उपगार ॥४४॥(४६) विहार करंता आवइ त्याहि समेतशखर परबत छइ ज्याहि । मास एक अणसण आदरइ काओत्सर्गमुद्रा जिनवर धरइ ॥४५।।(४७) फागण शुदि बारसि दीन जर्सि मोक्ष पहुता जिनवर तसिं । पंचसहि मुनीनो परीवार मुगतीपूरी-गढ पाम्यां सार ॥४६॥(४८) जनम जरा मरण ज्याहां नहीं रोग शोग भि भुख न तही ।
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