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________________ डिसेम्बर-२००९ मीही कपडा नहु पिहइरणा नासइ दुरि याहा नारि रे । याहा दुख पामइ आग्यलो न रेवु तेणइ ठारि दी०॥१०॥(१३) बाहिरि भीतर रहइ ऊजलो गुण ढाकतो आप रे । गुण बोलइ नर अवरना तजइ थोडुइ पाप रे ॥दी०॥११॥(१३) सधइणा नही धर्मनी अन्य दइ ऊपदेस रे । बुझवी मोख्यमा मोकलइ पोतइ नरगि परवेस रे ।।दी०।१२।।(१४) ताढि तडको खमइ मन व्यना आपइ आहार सहु कोय रे । मुरिख ए मन चीतवइ एथी दुरगति होय रे ॥१३॥दी०।।(१५) जिन कहइ कपट माया तजी करो साधन सोय रे । मुगति देसइ तुझ आतमा दुजो नही कोय रे ॥दी०|१४||(१६) || ढाल ॥ गुरु गीतारथ मारगी जोता सूणी देसना जीनवर केरी । लि नर बहु दीख्याइ मलीनाथनि प्रथम समे(मो)सणि । संघ थापना थाइ || हो जीनजी । मीठी मधुरी वाणी । आचली ॥१५॥(१७) भीसम परमुख्य मुनीवर मोटा, गणधर अठावीस । साध भलेरा संयमधारी संख्या सहिस च्यालीस । हो जीनजी०मी० ॥१६॥(१८) साधवी बंधमती जे परमुख पंचावन हजार । एक लख्य वाहासी सहइस भणीजइ श्रावकनो परीवार ||१७||(१९) त्रण लख्य सात हजार श्रावीका चोथो शघ सुसारो । बावीस सहइं जस केवलन्यांनी मलीतणो परीवार हो जी० ॥१८॥(२०) मनपर्याय मुनीस्वर मोटा सतरसहिं पंचास । बावीस सहिं जस अवधिज्ञानी हुं तस पगले दास हो जी०॥१९॥(२१) छ सहि अडसठी पूर्वधर पेखो चउंद सहि वादी मान । सहिं ओगणत्रीस मुनीवर मोय वईकरी लबधी-नीध्यान होजी०॥२०॥(२२) सहिस अठावीस आठ सहइ चोपन सेष साध नीत्य वंदु । च्यालीस सहिस प्रतेकबुध हुआ नर्मि नीत्य आनंदु ।होजी० ॥२१॥(२३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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