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________________ १३० अनुसन्धान-५० ॥ चालि-चतुर चंद्राननी ।। थाय आनंद ते अतीघणो मली धरत शुभ ध्यान रे । तेणइ दीन त्याह उपाईउं भलं केवलन्यांन रे ॥९७।।(९९) दीइ जानवर तीहा देसना || आचली ॥ समोसर्ण सुर त्याहा रचइ मली परषदा बार रे । मली जिणंद दीइ देसना धर्मभेद कहइ च्यार रे ॥दी०॥९८॥(२००) दान नि सील तप भावना आराधे सह कोय रे ।। दसवीधि धर्म यती तणो व्यवरी कहइ सोय रे ॥दी०॥९९॥(२०१) साध ख्यमा धरइ अती घणी आरजवपणुं अ अपार रे । मान नि लोभ दुरिं करइ तपभेद कहुं बार रे ॥दी०।२००॥(२०२) संयम सती राखइ सदा आतम नीरमल हाडि रे । कोडी एक राखइ नही भ्रह्मवरत नव वाडि रे |दी०॥१॥(३) जल माटी नवि चापीइ वीगइ नही नरच्यार रे । आप वखाण नंध्या नही नही पाप व्यापार रे ।।दी०॥२॥(४) मुड मुडाव्यु तिं वली जो मुगतिनइ कामि रे । नारी सहु माता जसी मन राखजे ठामि रे |दी०॥३॥(५) वाटिं वात न कीजीइ कथा परहरी च्यार रे । ईछ्या मन रूधे मुनी लेजे नीरस आहार रे |दी०॥४॥(६) डंभ आडंबर म म करे बाजी टोलि तजि हाश रे । (?) नीमताने मुल मंतर कही (?) वसइ दुरगति वाश रे ॥दी०॥५॥(७) आस तजे परब मोहोछवि म म रहइ एक ठामि रे । जोह मस्तग मन मुडीउं नीज आतमा कामि रे ॥दी०॥६॥(८) सार असार लुखु वली पेट भरीअ म खाय रे । आलि भाडं नीज देहनि यम चाल्युंअ जाय रे ॥दी०॥७॥(९) उंखाल पुखाल धोवू नही रातिं रखि म म खाय रे । दीवश नीद्रा रखे तु करइ लीधी जोह दीख्याय रे ॥८॥(१०) सीद वधारतो रोमनिं ऊपाडइ कस्यु सावरे । मुगती नोहि तुझ त्याहा लगइ नावइ जव्य समभाव रे ॥दी०॥९॥(११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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