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डिसेम्बर-२००९
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कलावंत ते जोत्यस्यु जंत्र वाहइ भइरवराग कल्याण निं नट थाइ ॥दा०॥९१।।(९२) चापेल चापि अनि तुझ चोलाइ करइ खाडनी खइलनिं पूरष नाहइ । लुवा आणता अतलस बलीअ लाहइ ढोलि बीजणउ भीअ नारिवाइ (?) ॥९२।।(९३) वसत्र भुषणइं वाधती नर सोभाइ । दूध साकर कढी अनि सुभट पाइ । बइठो मालीइ सुखडी सखर खाइ चावइ पान कपूर कफ कहीई न थाइ । दा० ॥९२।।(९४) सदाकाल ते सुखभरि सोय जाइ आण्यां सोवन ढोलीआ नर सुवाइ । तलाई तेणइ गलगली दीलि थाइ चापइ पध्यमनी पुरुषना सोय पाइ ।।दा०॥९३||(९५) चंदन केसर घसी अनि अंगि लाइ मोटा मोहोत आपइ छत्रपतीअ राइ । अंद्री नीरमल रूपनि दीरघ आइ घरि दूझती महइ खीआ सुंदर गाइ ॥दा०||९४॥(९६) भव चढत चढता नर तास जाइ हरि चक्रधर ईभ नर सोय थाइ । अस्यो दानमहीमा कहइ जिनराइ वीश्वसेननी सीधगती सोय थाइ ।।
दाता मोक्ष होई ॥१५॥(९७)
॥ दूहा ॥ मुगति पंथ दाता लहइ जिनवर दान पसाय । ज्याहा ज्याहां होइ प्रभु पारणुं दुंदभी नाद ज थाय ॥९६।।(९८)
॥ ढाल ॥
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