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________________ डिसेम्बर-२००९ १२५ PEEEEEEEE छइ मंत्र पूरविं सही ए सातमो हुं नीरधार तो ।।४९।(५०)।। माया-तपिं थयो सुदरी ए तुम नरना अवतार तो । देव ववेक तुम क्याहा गयो ए ईछो भोग असार तो ॥५०(५१)।। सुणी वचन नृप लाजीआ ए अहीआपोह करेह तो । जातीस्मरण पामीआ ए सुरनो भव देखेह तो ॥५१॥(५२)।। सुरनां सुख संभारता ए कहइ धीग मानवदेह तो । उशभ भोग नारी तणा ए फोकट भोगव्या एह तो ॥५२।।(५३) मानव भोग अम वोशरे ए ईर्छ नही सुरलोक तो । मुगति तणां सुख आगलिं ए सघलां सुख छइ फोक तो ॥५३।।(५४) अम्यो बुडा संसारमा ए काढ्या मलीइं आज तो । चरणे सीस नमावता ए नही राजनुं काज तो ॥५४॥(५५) मलीकुमरीइं कर ग्रहीए आण्या पीतानि पाश तो । चरणे नमीआ नृपतणइए वसस्युं संयम वाश तो ॥५५॥(५६) कुंभ पीता हरख्यो घणुं ए मली बुधि परमाण तो । मोहोत वधारयुं महीअलि ए बुझव्या पुरुष सुजाण तो ॥५६॥(५७) ॥ चोपई ॥ छइ पूरष त्याहा बुझ्या सही कहइ दीख्या लेस्यु गहइगही । मली कहइ देउं वरसीदान धरस्यु छेढइ संयमध्यान ॥५७||(५८) जाओ मंत्र घर तुम छइ जही वरस पछी आवेज्यो अही । दीख्या लेस्य मंत्री सात मोछव करसइ माहारो तात ||५८॥(५९) सूणी वचन राजा गया जाम नव लोकांतिक आव्या ताम । बुझी बुझी मली भगवंत लेई संयम तारो जगजंत ॥५९।।(६०) सुणि वचन जिन देता दान एक कोडि अठ लाख नीध्यान । सवा पोर लगई जिन देह भवि जीव व्यनां नव्य लेह ॥६०॥(६१) मणि मोती आपइ दोकडा ल्याहारी रूपईआ रोकडा । गज रथ घोडां भूषण देह लेतां लेनारा थाकेह ॥६१।।(६२) वस्त्रदान दीइ दातार उजल मुख करतो आवकार । हईडइ हरखी आपइ दान, नाचंता माडिं जिन कान ॥६२॥(६३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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