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________________ १२४ कशा भोग मानव तणा भोग भला सुरमाहिं । तीहइ भोग तुम भोगव्या तोहुं भुख्यां तुम आहि ||३७| (३८)|| ॥ चोपई ॥ आणइ ठामिं तुम ईछो भोग जो तुम पाम्या सुर संयोग । बत्रीस सागर न्युन्य काई आय एक हाथ सुदर यहो काय ||३८| (३९)।। काम कुचेष्टा ज्याहाकणि नही सुखभरि काल गमाडइ तही । साहयबि सेवक नहि तेणइ ठारि माखण सरखो फरस वीचारि ||३९| (४०)।। पाचे विमानं उंपजइ जेह सप्तलवी सुर केता तेह | अनुसन्धान- ५० ज्ञाति लवनु अदीकुं आय तो ते देवता मुगतिं जाय ||४०| ( ४१ ) || पंचम विमानि उपजइ जेह एक अवतारी होइ तेह | च्यार विमानमाहिं अवतरइ भव संख्याता ते पणि करइ ||४१ | (४२) || पाच विमान निं नव ग्रीवेय्य वचनवाद तीहा नही रेख । लेशा एक सकल छइ सदा ते मृतलोक्य न आवइ कदा ॥४२॥(४३)॥ अनंतर पाच विमानिं जोय चोसठि मणनां मोती होय । बीजइ ठामि कुभप्रमाण नादि लीणा रहइ सुर जाण || ४३ | (४४) ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ तो चढीओ घन मान गजे ॥ Jain Education International सुरना सुख छइ अती घणा ए मनमां च्युंत्यु थाय तो । रयण विमान छइ स्यास्वता ए काल सुखिं त्याहा जाय तो ||४४| (४५) ।। रूप सकोमल तेहनां ए अतिहिं सुगंधी देह तो । केस मुछ डाढी नही ए तेजपूज सुर तेह तो ॥४५॥ (४६) || रुधीर चर्ब नस नख नही ए रोम-रहीत तन जोय तो । परसेवो अंगि नही ए रोगरहीत तन होय तो ॥ ४६ ॥ (४७) || जरा न आवइ देवनिं ए सूखीआ लीलवीलास तो । मधुर वचन मुख्य बोलता ए सखरी सास उसास तो ||४७ (४८)॥ बत्रीस सहिस वरस ज गई ए होइ आहार ईछ्याय तो । सोल मास गया पछी ए सास उसास ज थाय तो ॥ ४८ ॥ (४९)।। त्रणि ज्ञानना तुम धणी ए पूरविं सुर अवतार तो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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