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________________ १२६ अनुसन्धान-५० || दूहा ॥ गजवी घोर तडका थकी कजल हुई मस्य वन । एणी परि लाई बापईआ जलोंते जलधर दीन ॥६३||(६४) कालमुह करी वंकमुह रतडमुह करी जास ।। तेणइ दीनि ए कवण गुणयु फल दीइ पलास ॥६४॥(६५) रीषभ कहइ धन क्यरपी अंतिं अवधिं जाय । अंधवणइ उतावलो चगलइ काली गाय ॥६५॥(६६) बापईडो जल रोई मगइ बिंदु न न लहइ तेणइ ठारि । मरूदेसे मेहे चीतवइ पडि आसुं पीउं वारि ॥६६॥(६७) मरूदेसे नर चालीओ तरु देखी ते धाय । दूम तपंता चीतवइ आवइ करइ अम छाह्य ||६७||(६८) तरशो लुक्यो नर धशो देखइ नईवें तीर । नई च्यंतइ परसेवथी तादूं होय शरीर ॥६८||(६९) भोज कहइ स्युं जनमीओ जाचीक दूबल अंग । ते कहइ ऊदरिं स्यु धरयो करइ जाचना भंग ॥६९॥(७०) भोज-परीक्षा-कारणिं आव्यो पंडीत एक । एक घर लेई नीकल्यो कहइ मुरिख अववेक ||७०॥(७१) जग सघलो जाच्यो फरी ठेल्यो जोई कपाल । भोज अख्यर नवी वाचतो दीइ दान भुपाल ॥७१।।(७२) वाको वह(हा)लो नारिनइं श्रोता पंडीत लग । धीगट वाहालो शाक्यनी दाता वह(हा)लो जग ॥७२॥(७३) || ढाल ॥ हु ज अकेली । नीद न आवइ रे ॥ जगनिं वाहालो मली जीणंदो रे । जगनि कीधो अती आनंदो रे । धनंद समा कीधा जन त्याहिं रे । नारी न ओलखि नीजघरमांहि रे ॥७३।।(७४) यम करइ पूरषा अत्यहिं अपारो रे भोलि ! हुं ताहारो भरतारो रे । मली दह होमाग्युं दानो रे तेणइ वलीआ अम देही वानो रे ॥७४||(७५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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