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________________ अनुसन्धानना १९मा अंक पछी, एकबे अंकोने बाद करतां दरेक अंकनां उपरणां पर विभिन्न चित्रो मूकवामां आवे छे, जेने लीधे अंको रमणीय बने छे. मोटा भागे तेनो परिचय पण आपवामां आवे छे. अनुसन्धानना सम्पादक तरीके क्वचित् साहित्यना/विद्याना/संशोधनना क्षेत्रे थती अनेक जाणवा मळती गरबडो परत्वे चिन्तनात्मक के सत्यनिवेदनात्मक लखाणो पण लखवानुं आव्युं छे. तेवे वखते कोईनाय प्रत्ये द्वेष, दंश, दुर्भाव लाव्या- राख्या विना, शुद्ध विद्याप्रीतिरूपे, जे कहेवानुं होय ते, गांठोगळफो राख्या वगर कही शकायुं छे, तेनो आनन्द पण छे. आ कारणे, सम्बन्धित व्यक्तिओने माटुं पण लाग्युं होवानुं जणायुं छे, परन्तु, तेनी सामे, निष्पक्ष अने मान्य विद्वज्जनो तथा विचारशील लोकोनो सानुकूल प्रतिभाव, बहु मोटा प्रमाणमां सांपड्यो छे, एम पण जाहेर करवुं जोईए. अनुसन्धान एक आनन्ददायक विद्याकीय प्रवृत्ति छे. तेणे- तेना माध्यमथी मने घणुं घणुं शीखवा मल्युं छे. घणा विद्वानो तथा साहित्यकारोनो सम्पर्क करावी आप्यो छे तो, आ पत्रिकाना कारणे मारा साथी साधुजनो तथा अमुक साध्वीजीओ पण हस्तलिखित पोथीओ वांचतां, नकल करतां तथा सम्पादन करतां शीख्यां छे. आ बधो लाभ घणो महत्त्वनो लागे छे. अन्तमां अमारा प्रकाशक एवा ट्रस्टने पण संभारी लऊं. 'हेमचन्द्राचार्य ट्रस्ट तथा तेना ट्रस्टीओ शेठ पंकजभाई वगेरेए हमेशां आ पत्रिकाना काममां पूरी सहकार आप्यो छे. क्यारेक अंकमां विलम्ब थयो होय तो उघराणी पण करी छे के केम आ वखते अंक नथी कर्यो ? तो क्रिष्ना ग्राफिक्सना हरजीभाई पटेल, किरीट पटेलनो पण मुद्रणना कार्यमां चीवटभर्यो सहयोग रह्यो छे. भायाणीजीए तेमना पर मूकेलो विश्वास सार्थक ठरे तेवी तेमनी काळजी होय छे. अनुसन्धानना अंकोमां आज पर्यन्त प्रकाशित सामग्रीनी एक वर्गीकृत तालिका अवसरे तैयार करी आपवानी इच्छा छे. तो आ छे अनुसन्धाननुं ऐतिह्य. Jain Education International For Private & Personal Use Only शी. www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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