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पचासमो अंक थई रह्यो छे ते, ओछामां ओछु मारा माटे, अने आमां रस लेनारा दरेक माटे, एक आनन्दनो तेम आश्वस्ततानो एहसास करावी जाय छे.
अनुसन्धानने अनेक मान्य-मूर्धन्य विद्वज्जनोनां अभिनन्दन सांपड्यां छे. कविवर मकरन्द दवे पण आमां ऊंडो रस लेता हता. तो अनेक विद्वानोनो सहयोग पण अनुसन्धानने मळ्यो छे. तेमां पण श्रीहरिवल्लभ भायाणी अने श्री जयन्त कोठारी - ए बेनी शब्दचर्चाओ ए आ पत्रिका माटे अलंकरण जेवी सामग्री बनती रही हती. डॉ. के.आर.चन्द्र, डॉ. ढांकी, डॉ. नगीन शाह वगेरे धुरन्धर विद्वानोनी पण कलम-प्रसादी आ पत्रिकाने मळी छे.
अफसोस एटलो ज के ए विद्वानोनी गेरहाजरीमा ए प्रकारनी शास्त्रीय शब्दचर्चा करे तेवा कोई विद्वान हवे रह्या नथी, अथवा एवा लेखोथी अनुसन्धान हवे वंचित रहे छे.
अनुसन्धानने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, जूनी (मध्यकालीन) गुजराती इत्यादि भाषाओनी अनेक अप्रगट रचनाओने प्रकाशमां आणी छे. ए रचनाओ महदंशे पद्यात्मक छे. केटलीक गद्य पण खरीज. अनेक ऐतिहासिक तथ्यो 'ट्रॅक नोंध' तथा अन्य लेखो द्वारा उजागर कर्यां छे. अनेक प्रकाशनो विषे माहिती पीरसी छे.
आचार्य हरिभद्रसूरिनी रचेली 'धूमावली' जेवी अप्रगट - अज्ञात लघु रचनाओ होय, योगीराज आनन्दघननी अप्रगट-अज्ञात रचना होय, कवि ऋषभदासे रचेल-स्वहस्ते लखेल रास होय, तेने प्रकाशित करवानुं श्रेय अनुसन्धानने फाळे जाय छे. 'पञ्चसूत्र' ए आ. हरिभद्रसूरिनी पोतानी रचना छे, चिरन्तन आचार्यनी नहि, ते पुरवार करवानो यश पण अनुसन्धानने ज मळ्यो छे.
जैन मुनिओनी वात करूं तो उपाध्याय भुवनचन्द्रजीए आ पत्रिकामां हमेशां ऊंडो रस लीधो छे. तेमनुं 'विहंगावलोकन' आ पत्रिकानुं घरेणुं छे. अनुसन्धाननी सामग्रीमा क्या केटली ने केवी भूल छे, ते बहुज प्रेमपूर्वक तेओ तेमां नोंधे छे, चीधे छ; अने अमे पण तेने एटला ज प्रेमपूर्वक, कशाये फेरफार-कापकूप विना छापीए छीए. खेद एटलो ज के बीजा जैन मुनिराजो हजी आमां जोईए तेटलो ऊंडो रस लेता नथी.
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