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(२) Object : प्राकृत भाषा अने जैन साहित्यविषयक सम्पादन, संशोधन,
माहिती वगेरेनी पत्रिका.
आ बन्ने वाक्यो पत्रिकाना आवरणपृष्ठ पर नियमित प्रगट थतां रह्यां छे.
१९९३ मां बे ज अंको थया हता. तेमां प्रथम अंक जोया पछी, अने ते जे जे व्यक्तिओ वगेरेने मोकलवामां आवेल तेनी यादी जोया पछी, मने ऊगेलो विचार में भायाणीजीने कह्यो के "आ पत्रिकानी भाषा गुजराती भले होय, पण तेनी लिपि देवनागरी राखीए. केम के देश-परदेशना अनेक विद्वानोने गुजराती लिपि उकेलवामां कष्ट थाय, पण नागरी लिपिमां ओछी तकलीफ थशे, अने तो तेओ वधु नहि तो पण, कृतिना सारांशने तो पकडी ज शकशे."
आ सूचन भायाणीजीने बहु गम्युं, अने फलत: बीजा ज अंकथी पत्रिकानी लिपि नागरी लिपि थई गई. अमारा आ प्रयोगने देशना तेम विदेशना अनेक विद्वानोए वखाणेलो, अने ते विषे पत्रो पण लखेला.
अंक क्रमाङ्क १७ पर्यन्त भायाणीजी आ पत्रिका साथे संकळायेला रह्या. छेल्ला ३-४ अंकोथी, जो के, तेमणे मोटा भागनी जवाबदारी छोडी दीधी हती. छतां तेमना लेखो, मार्गदर्शन वगेरे मळतां ज रह्यां. सत्तरमो अंक श्रीदलसुखभाई मालवणियानी स्मृतिमां को, ते तेमना हस्तक थयेलो छेल्लो अंक. ए पछी नवेम्बर ११, २०००मां भायाणीसाहेबनुं निधन थतां १८मो अंक २००१मां, तेमनी स्मृतिमां कर्यो, अने त्यारथी तमाम जवाबदारी मारा पर आवी.
'अनुसन्धान' अनियतकालिक पत्रिका तो छे ज, अनरजिस्टर्ड पत्रिका पण छे. तेनो एकमात्र उद्देश स्वाध्याय, संशोधन अने जाणकारी (माहिती) छे, अने तेने माटे सरकारी लायसन्स लईने अनेकविध आंटीचूंटीना कळणमां फसावानी कोई ज इच्छा अमारी नहोती/नथी. आ पत्रिकानो प्रकाशन-आंक आवो रह्यो छे :
ई. १९९३/२, १९९४/१, १९९५/२, ९६/२, ९७/३, ९८/२, ९९/३, २०००/२, २००१/१, २००२/३, २००३/५, २००४/४, २००५/४, २००६/३, २००७/५, २००८/४, २००९/३. सत्तर वर्ष अने ४९ अंको. अढारमा वर्षे तेनो
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