SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० अनुक्रमणिका खण्डेल्लकगच्छीय श्री शान्तिसूरि-विरचिता भक्तामरस्तव – वृत्तिः ।। सं. विजयशीलचन्द्रसूरि १ अज्ञातकर्तृका भक्तामरस्तव-सुखबोधिका वृत्तिः सं. विजयशीलचन्द्रसूरि २४ । श्री विवेकचदगणि कृतम् भक्तामरस्तोत्र-पादपूर्ति आदिनाथ-स्तोत्रम् सं. विनयसागर ३७ भवनभूषण-भूषणभवन काव्य सं. उपा. भुवनचन्द्र ४३ धर्मरत्नदुर्लभत्वम् सं. मुनिकल्याणकीर्तिविजय ५४ त्रिभाषामयी श्रीनेमिसूरीश्वरस्तुतिः सं. मुनिकल्याणकीर्तिविजय ६३ एक विज्ञप्तिपत्र सं. मुनित्रैलोक्यमण्डनविजय ६५ श्री पद्मानन्दसूरि रचित श्रावक-विधि रास म. विनयसागर ९३ श्रीदेवचन्दमुनिकृत तेजबाई व्रतग्रहण सज्झाय सं. मुनिसुजसचन्द्र-सुयशचन्द्रविजयौ १०१ कवि ऋषभदास कृत श्रीमल्लिनाथनो रास सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री १११ सुश्री कौमुदी बलदोटा - लिखित " 'नारद के व्यक्तित्व के बारे में जैन ग्रन्थों में प्रदर्शित संभ्रमावस्था' इस शोधपत्रके बारे में कुछ विचार मुनि कल्याणकीर्तिविजय १४२ ग्रन्थपरिचय : 'तर्करहस्यदीपिका' नो अनुवाद उपा.भुवनचन्द्र १४५ माहिती : नवां प्रकाशनो १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520550
Book TitleAnusandhan 2009 12 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy