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________________ होवानुं वधारे सम्भवित छे. आपणे त्यां वलभीपुरनी वाचना (बीजी) वेळाओ देवधिगणिमहाराज आदिनी निश्रामां आगमो पुस्तकारूढ थया होवानुं प्रसिद्ध पण छे, मान्य पण. ज्यारे आ निबन्धकारे तो राजा खारवेलना कहेवाथी तत्कालीन श्रमणोओ आगमो पुस्तकारूढ कर्या होवानो इतिहास ठपकारी दीधो छे ! अने आवी तो केटलीये विचित्र वातो आमां आलेखवामां आवी छे ! भाषाशास्त्रनी दृष्टिले जोवामां आवे तो अभ्यासी जनने तत्काळ ख्याल आवशे के आ तो साव अत्यारनी भाषा छे ! आर्ष भाषानो पडछायो पण आमां नथी ! डो. मधुसूदन ढांकी साथेनी चर्चा दरम्यान तेमणे कडं के आ लेखने पहेलां तो बहु महत्त्व अपायुं, पण पछी पुण्यविजयजी महाराजे कडं के 'आ तो बनावटी रचना छे.' अने श्रीजिनविजयजीओ पण का के 'आ बहु पाछळनी रचना छे.' डो. ढांकी तो तेना समग्रलक्षी अभ्यासना तारणरूपे स्पष्ट कहे छे के "आ वीसमी सदीनी रचना छे अने ते सर्वप्रथम जामनगरथी प्रकाशित थई हती, तेथी ते त्यांना ज कोई गृहस्थ विद्वाननी रचना होय ते वधु सम्भवित जणाय छे." ___ अने आपणा कोई मुनिराजे, आवी कोई ज शोधक दृष्टिनी खेवना राख्या विना, आ निबन्धने वास्तविक मानीने तेना आधारे जैन इतिहास- बयान करती, समर्थन करती, अने जैनेतर इतिहास खण्डन करती ओक मोटी चोपडी लखी नाखी छे, अने प्रकाशित करीने जैन धर्मनी मोटी सेवा कर्यानो परितोष पण अनुभव्यो छे. आवं जोइ त्यारे शोधक दृष्टि अने विवेकशील दृष्टि केटली अगत्यनी छे ते अवश्य समजाई जाय छे. आवी दृष्टिनी गेरहाजरीमा इतिहासने, परम्पराने, वास्तविकताने तेमज धर्म-सम्प्रदायने केटलो अन्याय करी बेसाय छे. अने केटली हानि पण पहोंचाडाय छे, तेनो अंदाज पण आवी शके छे. आडेधड लखातां पुस्तक कांई इतिहास बनी शके नहि. ____ आपणामां वधु ने वधु शोध-दृष्टिनो विकास थाय, अटलुं ज आ बधुं लखवा पाछळy अभिप्रेत छे. - शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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