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________________ पण होय छे. पैसानो दुर्व्यय तो थाय ज, पण ते करतां वधु वसमुं तो लागे के आवी जाली चीजोने, आ रीते, विवेक विना तेमज शोधक दृष्टि विना ज, समाज-समक्ष मूकवामां आवे छे, अने समाजने खोटो इतिहास पीरसवामां आवे छे. बाकी, आवो महत्त्वपूर्ण पत्र, आटलां वर्षोथी अप्राप्य अने अज्ञात रहे, अने वळी लेश पण फाट्यातूट्या के चहेराया-बगड्या विना अकबंध स्थितिमां-वेचातो-मळी आवे, ओ वात ज केटलीबधी विचित्र अने मानी न शकाय तेवी गणाय ! ओक तिहासिक महत्त्व धरावती विडम्बना छे हिमवन्तथरावली. श्रीहिमवन्तसूरि नामना आचार्य महाराजे रचेली होवानी मनाती आ थेरावली ओ संस्कृतमिश्रित प्राकृत (महाराष्ट्री) भाषामां लखायेल अक आधुनिक निबन्धमात्र होवा, तेनां बाह्यान्तर परीक्षणो थकी सुस्पष्ट जणातुं होवा छतां, तेने विक्रमनी त्रीजी शताब्दीनी रचना मानीने चालवू, ओ केटलुं तो विचित्र अने शोधविवेक-विहोणुं बनी रहे तेम छे ! ओनी गाथाओमां छन्दोभंगनो पार नथी. तेना गद्य विभागमां पण भारोभार आधुनिक रीति अने भाषानो उपयोग छे. केटलीक गाथाओ तो सीधी नन्दीसूत्रनी थेरावलीमाथी ज उठावेली छे. वळी, प्राकृतना लांबा लखाण पछी अकाओक संस्कृत लेख चालु थई जाय छे. उमास्वाति माटे उमसाइ अने तत्त्वार्थसूत्र माटे तत्तत्थसुत्त जेवा प्रयोगो द्वारा भाषाकीय कृतकता आपोआप साबित थई शके छे. हिमवन्तआचार्य तो युगप्रधान भगवंत हता, होवा जोईओ. तेमने माटे नन्दीसूत्रमा हिमवन्तखमासमण शब्द प्रयोजायो छे ज. तेमनी भाषा अने वाक्यनी तेमज पद्यनी रचना आटली छीछरी न होई शके. आर्ष रचनानो आ कृतिमां अकादो छांटो पण जोवा नथी मळतो. वधुमां, आ आखा निबन्धमां सिलसिलाबंध घटनाओ, सालवारी, राजाओनी तथा गुरुओनी क्रमिक परम्पराआ बधांनुं जे रीते आलेखन छे तेवं तो मध्यकाळना प्रबन्धग्रन्थोमां पण आलेखन थयेलुं जोवा नथी मळतुं ! समग्रपणे आ निबन्धनो अभ्यास करतां स्पष्ट थाय छे के आ आखोये निबन्ध, गुजराती भाषामां लखायेला कोई, जैन इतिहासमुं वर्णन करतां पुस्तक/ पुस्तकोना आधारे रचायेलो निबन्धमात्र छे. ते पण वीसमा सैकामां ज लखायेलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520546
Book TitleAnusandhan 2008 12 SrNo 46
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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