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लागे के तरत मनगमता कविना नाम साथे जोडी दइओ, अने ते पछी तेना शब्दो तथा भावोने तपास्या विना, कविनां अन्य पदोमां थती रजूआत करतां साव नोखी अने कविनी आध्यात्मिक ऊंचाई साथे तालमेळ नहि धरावती रचनाने पण कविना नामे चलावीओ, तो तेमां खामी आपणी विवेकशील शोधक दृष्टिनी ज गणवी पडे.
ताजेतरमा अक रमूजप्रेरक घटना बनी. अमदावादमां ज्ञानपंचमी-पर्वना निमित्ते ठेर ठेर ज्ञान-प्रदर्शनो योजातां होय छे. पालडीस्थित श्रीसुरेन्द्रसूरिजैन तत्त्वज्ञानशाळामां पण आq प्रदर्शन योजायेलुं. तेमां मुगल बादशाह अकबरनुं ओक जीवदयाने लगतुं फरमान रजू करवामां आवेलं. तेनो सचित्र परिचय 'गुजरात समाचार (ता. ४-११-०८)'मां आ प्रमाणे आपवामां आवेलो : "शहेनशाह अकबरे गुरुवर्य श्रीहीरसूरि महाराज साहेबने ५०० वर्ष पहेला १२ फूट लांबा कपडाना पट्टा पर उर्दू भाषामा पोताना दिल्हीना दरबारमां पधारवा आमन्त्रण आप्युं हतुं ते आखी कपडानी ओरीजीनल आखी प्रतने पण प्रदर्शनमां मूकवामां आवी छे. आ कपडानी प्रत पर शहेनशाह अकबरना सील पण मारेलां छे."
आ आखीये बाबत रमूजप्रेरक अटला माटे छे के सर्वप्रथम तो अकबरना उपलब्ध एक पण पत्र के फरमान कपडा उपर आलेखायेल नथी. वळी, ते १२ फूट लांबा नथी होता. ते कागळ उपर ज लखायेल पत्र रूपे होय छे, अने ते पण केवळ काळी शाहीथी ज लखवामां आवता होई, रंगबेरंगी चित्रात्मक सुशोभनो के आकृतिओने तेना पत्रोमां कोई ज स्थान नथी होतुं. जैनोने मळेला मोटा भागना फरमान-पत्रो, पारसी विद्वान कोमिसरियेटे पोताना ग्रन्थोमां छापेला छे, अने श्रीहीरविजयसूरिने मळेल फरमान-पत्रो 'सूरीश्वर अने सम्राट्' इत्यादि ग्रन्थोमा प्रकाशित छे. ते जोवाथी ज शाही पत्रो केवी रीते लखाता तेनो ख्याल आवी शके तेम छे.
वात अम छे के पुरातन पदार्थोनो व्यापार करनारा व्यापारीओ, आवी अनेक चीजो नकली तैयार करे-करावे छे, अने हजारो ने लाखोमां ते वेचे छे. जेमने आगळ-पाछळनुं ज्ञान न होय अने परीक्षा पण न होय तेवा लोको आवी चीजो जोईने अंजाई जता होय छे, अने मोटी रकम खरचीने खरीदता
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