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________________ सप्टेम्बर २००८ ओक उदाहरणथी आ वात समजवानी कोशीश करीओ : Glogal Summit मळे त्यारे, तेमां भारतनो प्रतिनिधि आवे अथवा जाय, त्यारे 'भारत आव्युं', अथवा 'भारत गयुं' ओम ज व्यवहार थतो होय छे. वळी, ओ प्रतिनिधि भारत छोडीने जाय त्यारे, Summit मां ते 'भारत' तरीके ओळख पामतो होवा छतां, भारत ओर्छ थतुं नथी; पूर्ण भारत ज रहे छ; अने ते भारत पाछो फरे त्यारे पण, तेना आववाथी भारतनो कोई तूटेलो अंश पूराय छे तेवू नथी; ते तो यथावत् पूर्ण भारत ज रहे छे. बहु ऊंची अने ऊंडी वात छे आ. ज्ञानसारनो पहेलो श्लोक, मारी दृष्टि, उपनिषदना आ सूक्तनी ऊंचाईने आंबे छे. ज्ञानसार प्रकरण विषे आईं तो घणुं घणुं कही शकाय. केटलुं कहेवू? उपाध्यायजी महाराजे आ ग्रन्थ रची आपीने तत्त्वपिपासुओ पर जे उपकार को छे तेनो बदलो वाळवानी आपणामां क्षमता नथी, अटलुं ज कहीने वात आटोपी लउं छु. जेवा उपाध्याय यशोविजयजी तेवा ज उपाध्याय देवचन्द्रजी. बन्ने समान तात्त्विक पुरुषो. बन्ने समान अनुभवज्ञानी. बन्ने समान अध्यात्मपथना पथिक. बन्नेय पूज्य पुरुषो प्रमाण, नय अने निश्चय-व्यवहारना समान अभ्यासीओ, समान प्ररूपको अने समान ग्रन्थकारो. आगम अर्थात् जिन-प्रवचन, तेना ओक ओक शब्दमां अनन्त अर्थक्षमता अने अनेक रहस्यो संतायां-समायां होय छे, तेनुं भान अने तेनुं मर्मोद्घाटन करवामां निपुण अवी असाधारण प्रतिभा धरावता आ बन्ने पूज्यो हता. उपाध्यायजी पछी सात-आठ दायका पछी देवचन्द्रजी भले थया होय, पण ते बन्ने वच्चेना भौतिक अन्तरनो छेद, तेमनी वच्चे सधायेला तात्त्विक अने अनुभूतिना साहचर्य-साम्य-सामीप्य थकी, ऊडी जतो जणाय छे. योगीराज आनन्दघनना पारस-स्पर्शे पोतानी धातुने वधु विशुद्ध बनावीने उपाध्यायजी जे साधनापथ उपर विहर्या अने आगळ वध्या, ते ज साधनापथ उपर विचरवानुं श्रीदेवचन्द्रजीओ पण पसंद कर्यु होइ, बन्ने ऋषितुल्य साधको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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