SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ अनुसन्धान ४५ मुनि मेरु संगइ संगतूरे, आरे जिन जिन जापि पइयइ आनंदु ॥२ भावइ० ॥ आदिनाथगीतं ॥ ॥ श्री राग ॥ पहिरि दाखिणु चीर चंदणु लावइ सरीरु, सकल सिंगारु करइ । गजपति गति चालइ बोलइ चतुरपणि, कहु किसु मनु न हरइ ॥१॥ आ रे आजु काइ करिवो, सखी रे जिणह भुवनि जाइवो ॥p०|| मुनिमेरु वदति वदन निरखियले परमाणंद भयो । जीराउलि प्रभु नवल निनादिं पारसनाथ जयो ॥२॥ रे आ आजु० ॥ इति जीराउलापार्श्वनाथगीतं ॥ [रागः ] ॥ नाट ॥ सखी रे रहसु जले कवलु आजु तुझ चिति, अवर न चाहइ रंगु ॥१॥ मोरा मनु लागिला, देखिनला पारसनाथ ॥p०|| जयउ सु सोहागिलु अससेणर(रा)यां तनि, संगति यति मुनिमेरु ॥२॥ मोरा मनु लागिला, देखिनला पारसनाथ ।।दू०।। ॥ पार्श्वनाथ गीतं ॥ [रागः] केदारा पसुय देखि नेमि रथ वालिलइ टालिलइ पातगु कलिमलो । राजल काजल पूरित मुख देखी सखी रे वचन कहिलो ॥१॥ कवणु मति एहु लियली, किहां चातुरी नेह गहिली ।।दू०॥ अपुचे रंगि रंगु सखी रे न कीजइ परचि रंगि रंगु भलो । वीतरागु नेमिनाथ न करइ नेहु, आपुचा तइ मनु लाइलो ॥ कवणु० ।। रहु सखि पतंग रंगु न धरीजइ, मोरउ रंगु मंजीठ जिसो । अविचल सम्बन्धु नेमिराजीमती जले थिरु रंगु इसो || कवणु० ॥ ॥ इति नेमिनाथ गीतं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy