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सप्टेम्बर २००८
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[ रागः ] ॥ धनाश्रयी ॥
हितुहितु विवेक विचारिलइ मनुरी गिलइ अजित जिण पाइ ||१|| परम लखु पाया रे, ऊपजेले अति आनंद ||दू०||
देवी विजयानंदनु जिनु जयउ, मुनि मेरु कहइ सरस सभाउ ||२|| परम लखु पाया रे, ऊपजेले अति आनंद ||दू०|| ॥ अजितजिनेश्वरगीतं ॥
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( राग ) ॥ पूर्वी मलार ॥
अम्हचि सरीरि सो गुण नही, रीजवीजइ जिणि प्रभुचीत मुनागर रूवडउ मनि रे, आरे कासी पुरपति जिननाथ ||०|| मेरु कहइ इकु अंतरंगु नेकु हइ, इतनइ जो होइ सु होउ । २ मुनागरू० ॥ इति बाणारसीपार्श्वनाथगीतं ॥
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॥ कुमोदवराडी ॥
चेतनारूपु आतमा विचारि विमोहि न मोहियला ॥१
सु तनु मनु रहसिला रे आणंदू पाइला ॥ दू०| मेरु भइ जिनभद्र सूरि पाटि जिनचंद्र सूरि देखिला ॥ २ सुतनुमनु०॥ इति जिनचंद्रसूरि गीतं ॥
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एतानि गीतानि श्रीकमलसंयमोपाध्यायविनीतविनेयमुनिमेरुमुनिना कृतानि ॥
भद्रं ॥ छा ।
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