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सप्टेम्बर २००८
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नोंधपात्र छे. आधारभूत प्रति कया समयनी छे ते सम्पादकोए नोंध्यु नथी. योग्य शुद्धपाठो योजीने कृतिमां दर्शाव्या छे अने भूमिकामां कृति अने कर्ता विशे पर्याप्त ऊहापोह कर्यो छे.
आ ज सम्पादक युगल द्वारा लोंकागच्छना श्रीपूज्योना त्रण भास पण सम्पादित थया छे. लोंकागच्छना आचार्य विशेनी रचनाओ, सम्पादन करवा द्वारा सम्पादक मुनियुगले संशोधकने छाजे एवी प्रतिबद्धता दर्शावी आपी छे. आ त्रणे कृतिओ इतिहास-भाषा-समाजजीवन आदि विषयोना अभ्यासीओने रसप्रद बने एवी छे.
कठिन शब्दोनो कोश आप्यो छे तेमां 'सेती', 'वीसूधे' जेवा शब्दो हजी उमेरी शकात. मुल गजराती पाठ यथातथ रूपे तैयार करवामां आव्यो छे तेमां सम्पादकोनी चोकसाई जणाइ आवे छे. मुनिश्रीसुजसविजय-सुयश विजयजीनी सम्पादित कृतिओ अनु०मां आ सर्वप्रथम प्रगट थई छे. आशाअपेक्षा रहे के संशोधन-सम्पादन क्षेत्रे ते सक्रिय रहेशे.
म. विनयसागरजीए विजयदेवसूरिविषयक बे भास सम्पादित कर्या छे. कृति-कर्ता विषयक पूरक विगतो अन्यत्रथी एकत्र करीने आपवी-ए पद्धति सम्पादकनी मुद्रासमान छे. कृतिना पाठमां वाचनदोषो थोडा रह्या छे. भास २, कडी ३- त्रीशुं चरण 'जे दमइं रे इंद्री मुनिताज' एम वाचवू जोईए. क. ५मां 'जिहां महीयल मेर' छे त्यां 'जिहां'ने स्थाने 'जा' साचो पाठ गणाय.
आ ज सम्पादके 'जयकेसरीसूरि' विषयक चार भास पण सम्पादित करीने आण्या छे. बृहत् ग्रन्थो पर काम करीए एटला ज अवधानपूर्वक आवी लघुकृतिओ पर पण काम करवू - एवी निष्ठा नवोदित संशोधनकारोए आ वयोवृद्ध विद्वद्वर्य पासेथी शीखवा जेवी छे.
भास १, क. २- 'लाखणदेविउं दार'ने स्थाने 'लाखणदेवि उदार' एम होवू जोइए. भास ४, क. ३मां 'वाणी अमी यति सूध'ने स्थाने 'वाणी अमीय ति सूध' एम वांचq जोइतुं हतुं.
___ जैन विद्याना फेन्च अभ्यासी विदुषी कोलेट काइयाने श्रद्धांजलि अर्पतो लेख आ अंकमां छे. जैन अने भारतीय विद्याना क्षेत्रे काम करी गयेला
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