________________
१०८
अनुसन्धान ४५
विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
अनुसंधान-४२ ने सुशोभित करती एक रचना - 'आनन्दसमुच्चय' एक लघुग्रन्थ ज छे. विषय, प्रौढि, कवन इत्यादि अनेक दृष्टिए प्रगल्भ कही शकाय एवी कृति छे. रचयिला समर्थ योगी पुरुष छे, जे जैन परम्पराना ज मुनि होय एम मानवा मन ललचाय छे. सम्पादकश्री कहे छे तेम ए 'कोई खास सम्प्रदायथी बन्धायेला नथी', ते साचुं छे; किन्तु, षड्दर्शनोनो समन्वय कर्ताए जे रीते को छे, जिनेश्वर माटे जे शब्दोमां आदर व्यक्त थयो छे अने आ रचना जैन ज्ञानभण्डारमा ज प्राप्त थाय छे वगेरे मुद्दानो विचार करतां जैन परम्परा साथे कर्तानो निकट सम्बन्ध अवश्य स्थापित थाय छे.
एम जणाय छे के श्रमण संघमां हठयोगनी गोरखसम्प्रदायनी गहन असर झीलनारो एक वर्ग क्यारेक उद्भव पाम्यो हतो, पण ए वधारे स्थिर के समद्ध थयो नथी. अन० ना केटलाक महिना पूर्वेना अंकमां आवा ज नाम अने विषयवाळी गुजराती रचनाओ प्रसिद्ध थई हती. आ विसराइ चूकेला 'सम्प्रदाय'नी कृतिओ अनु० द्वारा कदाच सर्वप्रथम वार प्रकाशमां आवे छे.
योगसाधना सम्बद्ध बिन्दुओने काव्यात्मक शैलीमा आमां गूंथी लेवामां आव्या छे. उच्च कोटिनुं पाण्डित्य अने योगमार्ग- स्वानुभवसिद्ध निरूपणबंनो सुन्दर समन्वय आ कृतिमां जोवा मळे छे. कृति शुद्धप्राय: छे. पाठान्तरो बीजी हस्तप्रतमांथी जे मळ्या छे तेमां आखा चरणो पण जुदा पडे छे, तेथी कर्ताए पोते ए सुधारा कर्या होय एवी सम्भावना रहे छे.
उद्धृत श्लोकोमा 'चले चित्ते०' ए श्लोकमां 'वनं' पाठ संगत छे - 'धनं' कल्पवानी जरूर नथी. चित्त चंचळ होय त्यारे वन पण लोक समान छे - भीड समान छे अने चित्त स्थिर थाय त्यारे लोक-लोकोनी भीड पण वन समान छे एवो भाव समजी शकाय छे.
मुनि रत्नसिंह कृत चार लघुस्तोत्रो मुनिद्वय द्वारा सम्पादित थईने आ अंकमां प्रसिद्ध थया छे. 'सौन्दर्यलहरी'नी पादपूर्ति रूपे रचायेखें 'आनन्दलहरी'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org