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सप्टेम्बर २००८
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ढूंक नोंध :
(१) ७४१ वर्ष जूनुं एक समवसरण
सुरेन्द्रनगर जिल्लाना ध्रांगध्रा शहेरमां श्रीअजितनाथ भगवानना देरासरमां ऊपरना गभारामां एक पत्थर- समवसरण बिराजमान हतुं, जेने हालमां ज निर्माण थयेल नूतन मण्डपमां नूतन पीठिका पर प्रतिष्ठित करवामां आव्युं छे. ध्रांगध्रानी आणंदजी कल्याणजीनी पेढी हस्तकना आ देरासरमां सं. २०६२ना चातुर्मासमां भव्य देवकुलिकाओ अने सुन्दर मण्डपमां अन्य प्रतिमाजीओ साथे आ समवसरण पुनः प्रतिष्ठित करेल छे. आयुं समवसरण एक ज पत्थरमां छे. घसारो लागेलो होवाथी हमणां लेप करवामां आव्यो छे, जेनाथी समवसरणनी सुन्दरतामां वधारे उठाव आव्यो छे. लेपकारनी कुशलताना कारणे समवसरणशिल्प तथा झीणी कोरणी ढंकाइ जवा पामी नथी ए पण अहीं नोंधq जोइए.
आ समवसरणमां श्रीवासुपूज्य स्वामीना चौमुखजी छे जे पत्थरमां ज कोरेला छे. समवसरण लगभग अढी फूट ऊंचुं छे. सौथी नीचे चार इंच पहोळी पीठिका छे, ऊपर त्रण गढ छे. सौथी नीचेना गढमां पालखी, गाडा, हाथी, घोडो वगेरे स्पष्ट जोई शकाय छे. बीजा गढमां पशु-पक्षीओ-साप, वान्दरो, सिंह, हाथी, पाडो वगेरे देखाय छे. त्रीजा गढमां पर्षदाओ छे. प्रभुजीनी आजुबाजु चामरधारी अने ऊपरना भागे हाथी जोवामां आवे छे. टोच ऊपर पत्थरनो छूटो कळश हतो. तेनी जग्याए आरसनुं कल्पवृक्ष हमणां नर्बु बनावीने बेसाडवामां आव्युं छे. जेनाथी समवसरणनी सुन्दरतामां ऊमेरो थयो छे.
पीठिकाना भागमां संस्कृत भाषामा लेख कोतरेलो छे. लिपि जैन देवनागरी छे. चारे बाजु फरती बे पंक्तिमा लेख गोठव्यो छे, अक्षरो लगभग एक इंच ऊंचाईना छे.
ए०॥ संवत १३२२ वर्षे माघसुदि ५ बुधे उमारधि (?) ग्रामे श्री वासुपूज्यचैत्ये अत्र (?) समवसरणे श्रीश्रीमालः ज्ञातीय सुत (?) बील्हणेन प्रथमं श्री वासुपूज्यबिम्बं पितृव्य ऊदा श्रेयसे तथा द्वितीयबिम्बं मातृ कुणिम--- तृतीयबिम्बं भ्रातृ-- श्रेयोर्थे तथा चतुर्थं बिम्बं मातामही तेऊ श्रेयसे कारितं
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