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________________ १०६ अनुसन्धान ४५ प्रतिष्ठितं च देवभद्रसूरि सन्ताने श्रीराजविहारीय श्रीसोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीप्रभाचन्द्रसूरिभिः ॥ शुभं भवतु संघस्य ।। सारांश : सं. १३२२ना वर्षमां उमारधि नामना गाममां श्रीवासुपूज्यस्वामीना चैत्यमां श्रीमालज्ञातीय ठक्कुर बील्हणे समवसरण स्थाप्युं जेमां श्रीवासुपूज्य स्वामी- प्रथम बिम्ब काका ऊदाना श्रेयार्थे, द्वितीय बिम्ब माता कूणिमदेना श्रेयार्थे, तृतीय बिम्ब भाईना श्रेयार्थे अने चोथु बिम्ब दादी तेऊना श्रेयार्थे कराव्यु तथा देवभद्रसूरिनी परम्परामां राजविहारीय श्रीसोमप्रभसूरिना शिष्य श्रीप्रभाचन्द्रसूरिओ प्रतिष्ठा करी. लेखमां केटलाक शब्दो-अक्षरो उकेली शकाया नथी. उमारधि गाम ध्रांगध्रानी आसपास ज होवू जोईए परंतु कोई माहिती मळी शकी नथी. आ गाम तथा राजविहारीय पक्ष के गच्छ विशे इतिहासविदो प्रकाश पाडे एवी अपेक्षा. - उपा. भुवनचन्द्र (२) अनुसन्धान ४३-४४ मांना लेखो विशे पूरक नोंध (१) अनु० ४३, पृ. ४३. 'सुजैत्रपुर मण्डन महावीरजिनस्तोत्र'मां निर्दिष्ट सुजैत्रपुर ते वर्तमान- खेडा-जिल्ला- सोजीत्रा होवानुं जणाय छे. आ जाणकारी आपता मुनि श्रुततिलकविजयजीए एम पण जणाव्यु के वर्तमानमां पण सोजीत्रामां महावीरस्वामीन देरासर छे. अनु० ४४मां श्रीरत्नसिंहसूरिकृत चोंत्रीस लघुकृतिओनो समुच्चय प्रकाशित थयो छे. ते अंगे केटलीक ज्ञातव्य अने महत्त्वपूर्ण वातो डॉ. मधुसूदन ढांकी तरफथी प्राप्त थई छे, ते आ प्रमाणे छ :० आमां निर्दिष्ट धर्मसूरि- राजगच्छना हता. चन्द्रगच्छ ज, पाछळथी, कोईक राजवीए - घणा भागे त्रिभुवनगढना राजवीए - दीक्षा लेतां, राजगच्छ कहेवायो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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