________________
अनुसन्धान ४४
तुह पयपंकयलीणं काऊण मणं जिणिंद ! पत्थेमि । जम्मे जम्मे वि पुणो होज्जमहं किंकरो तुम्ह ॥ १२ ॥ जह वयणेणं तह जइ मणमि मह पहु ! न एरिसा भत्ती । ता एत्थ तुमं सामिय ! नवरि पमाणं किमन्नेणं ।। १३ ।। इय रोमंचियगत्तो आणंदवसुल्लसंतबाहजलो। जोडियकरकमलोहं समग्गयं खलियवयणपरो ॥ १४ ॥ अज्ज कयत्थो धन्नो संपुन्नमणोरहो य जाओहं । भूमीइ सिरं काउं इय थुणिओ रयणसूरीहि ॥ १५ ॥ छ ।।
॥ इति पार्श्वजिनस्तवनम् ॥
OG
(२७) श्रीधर्मसूरि देशनागुणस्तुति सिरिसिलसूरिगुरुगणहरह, पयपंकय पणमेवि । धमसूरि सूरिहि रलिय हउं, देसण गुण वनेवि ।। १ ।। परउवयारह मूलु जगि, देसणसरिसु न दाणु । सा धमसुरि तुहु वन्नियइ, जिण(म)जायइ सुहझाणु ॥ २ ॥ जिणवरधम्मु सुहावणउ, जोइ भासइ इहलोइ । जेत्तिउ अंतर हवइ पुणु, तेत्तिउ पिच्छहु तोइ ॥ ३ ॥ नीरह पिंडु पसिद्ध जगि, पोइणि ठवियउ जाव । मोत्तिय केरिय भंतविय, कवणह न करइ ताव ॥ ४ ॥ अलिउ पयंपइ एउ जणु, कलिजुगि वट्टइ लोइ । धमसुरिसन्निहु वररयणु, कयजुगु मिल्लि कि कोइ ॥ ५ ॥ धमसुरिझुणि जो अमियसम, कनंजलिहिं पिएइ। . सो छिदिवि भवबंधणई, सिवसोक्खइं सेवेइ ।। ६ ॥ धमसूरि देसण-महिम तुहु, पेच्छवि नियनयणेहिं । बोल्लहिं बाल परोप्परवि, नाणाविहवयणेहिं ।। ७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org