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________________ जून २००८ सूसम जाइय अज्जु हलि, अमियहि वरिसिय मेह । पयपंकेरुह धमसुरिहि, भवियहु भत्ति नमेहु ॥ ८ ॥ हरिसपफुल्लियनयण हउ, अज्जु न मायइ अंगि । धमसुर धम्मु कहंताह, हियडइ नच्चिउ रंगि ॥ ९ ॥ बहिलि कंतु न पुच्छियउ, मई आवंतिय अज्जु । जिं मिल्लिवि हि संगुहउं, साहउ सिवपय कज्जु ॥ १० ॥ tयण सलूणिय हेल्लि पुणु, काहिसु सफलउ जम्मु । गुरु पडिवज्जिवि धमयसूरि, गिण्हिसु सावयधम् ॥ ११ ॥ अच्छउ दंसणु दूरि तुहु, सव्वगुणंगणट्टाणु । धमसुरि नाउंवि तुज्झ महु, अमियरसेण समाणु ॥ १२ ॥ नवजोयणि विलसंतियहि, घरणिहि घरु मेल्लेवि । दिक्ख लियहिं धमसूरि किवि, तुहु देसण निसुणेवि ॥ १३ ॥ कणयदंडमंडियपवर, सोहिय थंभसएहि । विहिचेइय किवि कारवहिं, नाणाविह ठाणेहिं ॥ १४ ॥ जंगम सरसइ मज्झु गुरू, सुरगुरु अह पच्चक्खु । धमसुरि सूरिहि तिलउ अह एहु विसयहं निरवेक्खु ॥ १५ ॥ हियउ निब्भर पूरियडं, महु धमसूरि गुणेहिं । एवहिं किज्जउ काई सहि महु उवएसु भणेहिं ॥ १६ ॥ भावण भावहिं केवि पुणु, किवि दाणिण वरिसंति । सीलु कुति तवंति तवु, किवि धमसूरि थुणंति ॥ १७ ॥ जयउ जयउ वक्खाण महि, जहि एरिस आलाव । पावारंभवि जेत्थु नर, संजायहिं सुह भाव ॥ १८ ॥ जो जणनयणाणंदयरु, सरउन्निव जिंव चंदु | सो धमसुर पहु जण, सिवसाहणसुहकंदु ॥ १९ ॥ लडहकंति सुकुमार-तणु दुद्धकवउ धारेइ । धमसुरिसरिसा एत्थु जगि, विरलउ गुरु पावेइ ॥ २० ॥ इय महुरवाणि जे गुणहि धमसुरि गुणथुइ एह । तेहिय वंछिउ सयलु सुहु, पावहिं गयसंदेह ॥ २१ ॥ छ ॥ 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only ५७ www.jainelibrary.org
SR No.520544
Book TitleAnusandhan 2008 06 SrNo 44
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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