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________________ जून २००८ इय पउमनाहगणिणा बावत्तरि जिणवराण संथवणं । कुमरविहारट्ठियाणं विहियमिणं कुणउ कल्लाणं ॥ १४ ।। &08 (२६) श्री पार्श्वजिनस्तवनम् जय जय पास ! सुहायर ! तं पेच्छिय सामि ! कुवलयं च अहं । आणंदं पयडंतो नियभावं किंपि जंपेमि ॥ १ ॥ अज्जं चिय गरुयमहो ! अज्जं चिय मज्झ मंगलं परमं । निरुवमसोहग्गनिही जं दिट्ठो सामि ! नयणेहिं ॥ २ ॥ अज्जं चिय जाओ हं अज्जं चिय जीवियं अहं मन्ने । जं अमियकुंडतुल्लो नयणपहं पहु ! तुमं पत्तो ॥ ३ ॥ अज्जं चिय निहिलाहो अज्जं चिय दसदिसाउ पयडाओ। जं नाह ! जलहर ! मए मोरेण व तं सि सच्चविओ ॥ ४ ॥ अज्जं चिय उच्छाहो अज्जं चिय कामधेणुसंपत्ती । धणयपुरीरज्जोवमरोरेण व जं तुमं लद्धो ।। ५ ॥ अज्जं चिय कप्पतरू अज्जं चिय अमियपूरिओ अप्पो । मंजरियचूयवणसम-कलयंठेणं व जं दिट्ठो ॥ ६ ॥ अज्जं चिय अच्छेरं अज्जं चिय हिययवल्लहं लद्धं । जं पहु ! तुह पयपउमे भमराइज्जइ महच्छीहिं ॥ ७ ॥ अज्जं चिय चक्किपयं अज्ज चिय इंदसंपया पत्ता । जं चरणसरे तुम्हं हंसो इव रमइ नयणजुयं ॥ ८ ॥ अज्जं चिय रससिद्धी अज्जं चिय विधिया मए राहा । मुहचंदचंदिमा तुह जं पिज्जइ नयणचउरेहिं ।। ९ ॥ अज्जं चिय मुत्तिसुहं अज्जं चिय तिहुयणे वि मह रज्जं । लायन्नजलं तुह पहु ! जं पिज्जइ नयणपुडएहि ॥ १० ॥ अज्जं चिय वद्धावणमज्जं चिय नच्चियं मह मणेणं । जयजयपडायसरिसं जं पत्तं दंसणं तुम्हा ॥ ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520544
Book TitleAnusandhan 2008 06 SrNo 44
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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