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________________ अनुसन्धान ४३ कृतिनी भूमिकामां सूचित संशोधनो अगत्यनां छे. द्रव्यषटके (श्लो.३९) ना स्थाने दृष्टिषट्के एवो सुधारो सूचवायो छे ते महत्त्वनो छे. श्लो. ३७मां दीप (पि)का एम सुधारो सूचवायो छे ते थोडो विचारप्रेरक छे. हस्तप्रतिमां स्याद्वाददीपका एवो पाठ मळे छे अने आ अन्तिम श्लोक नथी - ए हकीकतने ध्यानमां लेतां आ शब्द कृतिनुं नाम सूचवतो होय एवं फलित नथी थतुं. श्लोकगत सन्दर्भने जोतां स्याद्वाददीपकाः एवो पाठ यथार्थ जणाय छे. कर्ता कृतिना उपसंहार रूपे "आ बधां स्याद्वादना दीपक प्रयोगो-उदाहरणो छे." - एम कहेता जणाय छे. आथी वस्तुतः पुष्पिकामां दर्शित स्याद्वादकलिका ज कृति, मूळ नाम होवाथी संभावना विशेष छे, स्याद्वाददीपिका नाम भ्रमवश कल्पी लेवामां आव्युं जणाय छे. निगोदथी मोक्ष सुधी नामक लेख निगोदना विषयमा अनेक बिन्दुओ तुलनात्मक रीते रजू करे छे. डॉ. पद्मनाभ जैनीना एक लेखनो आ सारानुवाद छे. अनुवाद सुवाच्य छे. अंग्रेजी साहित्यमांथी विशिष्ट सामग्री आ रीते गुजराती विगेरे भाषाओमां अनूदित थाय ए अनेक दृष्टिए इच्छनीय छे. ___अनु.४२ नी प्रथम अने प्रकृष्ट कृति 'श्रीपञ्चसूत्र स्तबक' आ महान शास्त्र पर रचायेली गम्भीर कृति तरीके, एक श्रावकनी कृति तरीके, कच्छ अने कोडाय गामे थयेली सदागम प्रवृत्ति ना एक प्रदानना स्वरूपे- एम विविध रीते विशिष्ट छे. कोडाय गाम कच्छना काशी तरीके विख्यात थयुं एना मूळमां श्रीहेमराज भीमशी नामना संशोधक विद्वाने त्यां स्थापेल ज्ञानभण्डार, 'सदागम प्रवृत्ति' नामे ज्ञानवर्धक संस्था तथा 'अवठंभशाळा' अर्थात् निवासी विद्यालय हता. आ शाळामां अनेक स्त्री-पुरुषो जैन शास्त्रो तथा संस्कृत प्राकृतनुं शिक्षण पाम्या हता. एमांना एक श्रीवेलजी भारमल हता. एमना हस्ते लखायेली अनेक प्रतिओ जोवा मळे छे. एमनी स्वतन्त्र कृति आ सर्वप्रथम प्रकाशित थई छे. वेलजीभाईनी विद्वत्ता तथा शास्त्रीय विषयमा गति केवा उच्च स्तरना हता तेनां दर्शन आ रचनामां थाय छे. सम्पूर्ण टबो हारिभद्रीय टीकाना आधारे लखायो छे. टबामां श्लोको छे ते पण ए टीकामां उद्धृत थयेला श्लोको ज छे. विशेष अभ्यासीओ माटे टीकाकारे टीकानी पंक्तिओ वच्चे वच्चे उद्धृत करी छे. टीकाना आधारे मूळ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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