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________________ ७४ विहंगावलोकन उपा. भुवनचन्द्र 'जैन आगमोमां मांसाहार' ए विषय पर आजथी सोएक वर्ष पूर्वे चालेली चर्चाना बे-त्रण लेख अनु. ना ४१मा अंकमां प्रगट थया छे. जेमां एक बाजू जर्मन प्रो. हर्मन जेकोबीनी विद्वत्ता देखाई आवे छे तो बीजी बाजू जैनाचार्योंनी आहारविषयक मीमांसा दृढ स्वरूपे तरी आवे छे. प्रो. जेकोबीए आचाराङ्ग सूत्रना तेमना जर्मन अनुवादमां केटलाक आलापक अने शब्दोना मांसपरक अर्थ कर्या हता, जेना प्रत्याघात / परिहार रूपे पं. गम्भीरविजयगणी अने मुनि नेमिविजय (विजयनेमिसूरि) - मुनि आनन्दसागर (सागरानन्दसूरि ) ना पत्रो / लेखो अने डो. जेकोबीनो संस्कृत पत्र वगेरे सामग्री संकलित रूपे अहीं मूकाई छे. आ सामग्रीमांथी उपसी आवती विचारणीय-प्रेरक वातो सम्पादक श्रीए भूमिकामां तारवी आपी छे. आगमना अमुक शब्दोना अर्थ परत्वे जैन आचार्यो / विद्वानोमां प्रवर्तता बे भिन्न अभिप्रायो पाछळनी अपेक्षाओ समजावी छे. पं. गम्भीरविजयजी तेमना लेखमां आगमिक शब्दोना वनस्पतिपरक अर्थ करनार पार्श्वचन्द्रसूरिने उत्सूत्रभाषी अने असत्यभाषी कहे छे. तेमां अन्यनी अपेक्षाने समझवा स्वीकारवानी तत्परता खूटती लागे. पार्श्वचन्द्रसूरिए आचाराङ्ग स्तबकमां आ सन्दर्भमां लखेला उद्गार अहीं जोइए : इहां वृत्तिकार लोकप्रसिद्ध मांस-मच्छादिकना भाव वखाण्या छई परं सूत्रस्यउं विरुद्ध थकी ए अर्थ इम न संभवइ, पछे वली श्रीजिनमतना जाण श्रीगीतार्थ जे अर्थ करइं ते प्रमाण... "अस्थिनइं शब्दिनं 'कुलिया' - गुठली बोली छइ, मंस शब्दि मांस मांहिलउ गिर संभावीयइ छइ "वृत्ति मांहि अपवादमार्ग कह्यो छइ " आ विधानोमां अनाग्रह अने सापेक्ष दृष्टि तरवरी रहे छे, ते ध्यानमां न लेतां उत्सूत्रभाषी, असत्यभाषी जेवां विधानो थाय तो ते पूर्वग्रहनुं ज परिणाम होई शके. संशोधन क्षेत्रमां पूर्वग्रह, पक्षीय दृष्टिथी बचवुं आवश्यक छे ए ज आ निरीक्षणनो सार छे. " — Jain Education International मार्च २००८ स्याद्वादकलिका नामक कृति अभ्यासनी सामग्री लेखे नोंधपात्र छे. अनु. ४२मां आ कृति पूर्वे प्रकाशित थयानी नोंध मूकाई छे, तेम छतां आ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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