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ढूंकनोंध : आवरणचित्र-परिचय
- शी. आ चित्रात्मक यन्त्र अथवा यन्त्रात्मक चित्र ते लोकपुरुष- चित्र छे. जैन परम्परा प्रमाणे सृष्टिनुं स्वरूप अने भूगोल केवां छे, तेनो अन्दाज आ यन्त्र द्वारा प्राप्त थाय छे. हिन्दु-वैदिक/पौराणिक परम्परामां जेम १४ लोक के १४ भुवन प्रसिद्ध छे, तेम जैन परम्परामां सृष्टि १४ राजलोक-प्रमाण मनाई छे. ए १४ राजलोकनुं स्वरूप तथा तेनु अत्यन्त जटिल गणित-बन्नेने समजवा माटे आ यन्त्र-चित्र उपयुक्त छे. .
आ चित्र जैन भूगोल-खगोल विज्ञान-विषयक होई अध्ययन माटे खूब आवश्यक छे. ते ज कारणे जैन भण्डारोनी पोथीओमां, कागळ ऊपर तथा वस्त्रपट रूपे आ चित्र विपुल प्रमाणमां आलेखातुं रयुं छे. आ अंकना
आवरणपृष्ठ ऊपर मूकवामां आवेल चित्र आQ ज एक प्राचीन अने कलात्मक चित्र छे.
मांडवी-कच्छ स्थित खरतरगच्छ संघना ज्ञानभण्डारमांना आ पोथीचित्र के कागद-चित्रनी विशेषता तेनी कलात्मकतामां तो छे ज, परन्तु तेनी खास विशेषता ए छे के आ चित्र पर पुष्पिका - Colophon पण लखायेली छे, जे विरल बाबत गणाय. आ पुष्पिकाथी चित्र दस्तावेजी तेमज ऐतिहासिक मूल्य धरावती पुरावस्तु प्रमाणित थई जाय छे - आपोआप. पुष्पिका चित्रना मथाळे छे, अने तेनुं लखाण आ प्रमाणे छ : “॥६०॥ संवत् १६०१ वर्षे आसउज वदि १० गुरुवारे । पुष्यनक्षत्रे पत्रमिदं श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिभिः कारितं । आगरा नगर वास्तव्य । श्रा० भागांनिमित्तं ।। चित्रकर मि० फलल्लह दिलवली ॥
॥ पुरुषाकार लोकनालियन्त्रकमिदं । त्रसनाडी मध्यस्थ सर्वजीवात्मकं १४ राजप्रमाणं ॥
आ लेख अनुसार उपलब्ध थती जाणकारी कांईक आवी छे : १. आ चित्र कोई पोथीनो भाग न होतां स्वतन्त्र चित्र-यन्त्र तरीके आलेखायुं छे. २. १७मा शतकना प्रथम वर्षमां ज ते आलेखायुं होई, १६मा शतकनी
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