SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डिसेम्बर २००७ ५५ 'धर्म' शब्द के जो विविध अर्थ कोशकारों ने अंकित किये हैं उनमें स्वभाव यह अर्थ जरूर पाया जाता है लेकिन सामान्यीकरण की प्रक्रिया से धर्म का जो व्यापक अर्थ जैन दर्शन में दिया जाता है यह जैन दर्शन की उपलब्धि है। विविध प्राकृत जैन प्राचीन ग्रन्थों में 'धर्म' की यही व्याख्या दी है । (२) धर्म : ध्यान का एक प्रकार - प्राचीन अर्धमागधी और शौरसेनी ग्रन्थों में 'संवर' क साधनों में 'तप' का निर्देश किया गया है । तप के प्रकार बताते समय ‘अन्तरङ्ग तप' में 'ध्यान' की चर्चा की गई है । कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार ध्यान की व्याख्या निम्न प्रकार से की गई है। अंतो-मुहत्त-मेत्तं लीणं वत्थुम्मि माणसं णाणं । झाण भण्णदि समए असुहं च सुहं च तं दुविहं ॥५ उपर्युक्त आगमों में ध्यान के चार प्रकार बतायें है । आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल । इसमें से शुभ या प्रशस्त-ध्यान का पहला प्रकार 'धर्म' है । स्थानाङ्ग, कार्तिकेयानुप्रेक्षा आदि प्राकृत ग्रन्थों में धर्मध्यान शब्द में ३. धम्मो वत्थुसहावो । कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४७८; वत्थुसहावं पइ तं पि स-परपज्जायभेयओ भिन्नं । तं जेण जीवभावो भिन्ना य तओ घडाईया ॥ विशेषावश्यकभाष्य ४९५; अप्पु पयासर अप्पु परु जिम अंबरि रवि-राउ । जोइय एत्थु म भंति करि एहउ वत्थु-सहाउ ॥ परमात्मप्रकाश १.१०१ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं च विउस्सग्गो, एसो अभितरो तवो ॥ उत्तराध्ययनसूत्र ३०.३० कातिकेयानुप्रेक्षा ४७० चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा - अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे । स्थानांग ४.६०; समवायांग ४.२; भगवतीसूत्र २५.६००; उत्तराध्ययनसूत्र ३०.३५; मूलाचार ३९४ (५); ६६६(७); कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४७१. अट्टं च रुद्दसहियं दोण्णि वि झाणाणि अप्पसत्थाणि ।। धम्मं सुकं च दुवे पसत्थझाणाणि णेयाणि ॥ मूलाचार ३९४ (५) ५. ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy