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October-2007
गानपद्धति अलग प्रकारनी हती.
आ अंकमां 'भिक्षाविचार - जैन तथा वैदिक दृष्टिसे" तेमज "जैन और वैदिक परम्परा में वनस्पतिविचार" एवा बे संशोधनलेखो प्रगट थया छे. बंने लेख पोताना विषयतुं तुलनात्मक परीक्षण-संकलन करे छे अने बंने परम्पराओनी विशेषता सुन्दर रीते स्पष्ट करे छे.
जैन देरासर नानी खाखर - ३७०४३५ कच्छ, गुजरात
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आवरण-छबी-परिचय खम्भात-स्तम्भतीर्थना, कालान्तरे मस्जीदमा रूपान्तरित थयेला, एक जैन मन्दिरना अलङ्करणरूप खण्डावशेष- आ चित्र छे. १२-१३मा । शतकनुं शिल्प होवानुं अनुमान थई शके.
आ. शालिभद्रसूरि पीठ पर बेठा छे, अने सामे बेठेला पांच साधुओने वाचना आपी रह्या छे, तेवू आ शिल्पांकन छे. वादी कुमुदचन्द्र अने वादी देवसूरि वच्चे थयेल शास्त्रार्थने आलेखती चित्रमय काष्ठपट्टिका, आ शिल्पने जोतां सहज ज सांभरे.
खण्डित-त्रुटित हालतमां सांपडेली आ पेनल हाल प्रायः खम्भातनी आस-कोमर्स कोलेजना, क्यारेक निर्माणाधीन एवा म्यूजियम
माटे, त्यां संगृहीत छे; घणा भागे तो कोलेजना पटांगणमां क्यांक | रझळती!
तेना पर वंचाता नामाक्षरो आ प्रमाणे छे :
०००चंद्र । भावदेव । भ. हरिश्चंद्र । भ. बहुदेव । धनदेव महत्तर। वा० शुभचन्द्रगणि । श्रीशालिभद्रसूरिः । भ. अभय ००० । ।
थारापद्रीयगच्छमां आ.शालिभद्रसूरि १२मा शतकमां थया छे. आ , । तेमनी छबी हशे ?
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