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________________ अनुसन्धान-४१ माहिती नवां प्रकाशनो : १. विनोदचोत्रीसी : कर्ता हरजी मुनि, सं. कान्तिभाई बी. शाह, प्रका. गुजराती साहित्य परिषद - अमदावाद तथा सौ.के. प्राणगुरु जैन फिलो. एन्ड लिट. रिसर्च सेन्टर - मुंबई, ई. २००५ संवत् १६२४ मां एक जैन मुनि द्वारा रचाएल आ कृति विनोदात्मक ३४ पद्य-कथाओनुं विषयवस्तु धरावे छे. केटलीक कथाओ तो आपणने एटली बधी जाणीती छे के अना वांचनमाथी पसार थतां, आ कथाओ सर्वकालिक अने विविधदेशीय होवानुं अवश्य लागवान. शास्त्रीय सम्पादन केQ सुग्रथित-सुव्यवस्थित अने लगभग उद्भवनारा महत्त्वना सघळा प्रश्नोनुं स्वयंभू समाधान आपे तेवू होय-होवू जोईए, तेनो अंदाज आ सम्पादनने अवलोकवाथी चोक्कस मळी रहे. प्रारम्भमां अभ्यासपूर्ण भूमिका, पछी समीक्षित कृति-वाचना, कथासंक्षेप अने छेवटे उपयुक्त परिशिष्टो - आ बधांने लीधे सम्पादन अभ्यासपूर्ण ज नहि, पण उत्तम अभ्यास करनाराओ माटे मार्गदर्शक बने तेवू नमूनेदार थयुं छे. जयन्तभाई कोठारीनी चीवट अने सुघडतानी झलक आ सम्पादनमां जडे छे. २. सप्तभङ्गीप्रभा (सप्तभङ्गयुपनिषत् ) - प्रणेता : आचार्य श्रीविजयनेमिसूरि; सं. कीर्तित्रयी; प्र. श्रीजैन ग्रन्थप्रकाशन समिति, खम्भात; ई. २००७, वि.सं. २०६३ वीसमी सदीना प्रभावक जैनाचार्यनी आ रचना नव्यन्यायनी प्रगल्भशैलीमां सप्तभङ्गीनी विशद चर्चा करती रचना छे. सं. २००८मां तेनुं प्रकाशन थयेलं, जे अलभ्य थवाथी नवेसरथी सम्पादनपूर्वक आ प्रकाशित करवामां आवेल छे. अभ्यासीओने उपयोगी ग्रन्थ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520541
Book TitleAnusandhan 2007 10 SrNo 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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