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________________ 62 अनुसन्धान ३९ श्रीजीननी बारमी कुसुमवृष्टिनी पूजा हर्षे करतो थको शुद्धभावे करें तो, सुवर्ण - पुरिसो मिलाई हर्ष पामें - तेहथी पणि अधिक हरखिवंत था[इ] || २ || हवरं बारमी पूजानुं गीत मेघमल्हार रागई कहई छइ । गीतं राग मेघ हा ॥ मेहला जिउं मिली वरसई करी करी फूलपगर हरैसई ... मेह० पंचवरण जानु-माने समोसरणि जिन( म ) सुर मिली तिम करे श्रावक लोक । द्वादशमी " पूजा तिम जनमन मुर्दे फरसइं... मेह० ॥ १ ॥ अथ मेघमलारमां गीत । 1 श्रीजिनेश्वरी पूजा मेघनी परें घणे हर्खे पोहचें । मेघ जिम मिली वरसई तिम तिम फूलपगर करी करी हर्षइ वरसो । जिम जिम फूलपगर इंद्रे भर्यो ते भावें वितरागने फुलपगर भरो । वलण करवी । पंचवर्णी कुसुम जानुं कहतां ढींचण प्रमाणइं भरें । वली " समवसरण मांहि जिम देवता मिलीने, च्यार नीकायना देवता भेला मिलै कुसुम वृष्टि कर, तिम-तिणें प्रकारें श्रावकलोक पणि भेला थइनें जिननी भक्ति करई, इम भव्य प्रांणी जे बारमी पूजा प्रभुनई करेंस्यें तेहनें जनम-जनमनुं पातिक जाई, अनंता सुखनी स्पर्श] ना करई । लोक - भविक लोक, तेहना मनमां मुद- हर्षनई फरसो ॥ १ ॥ भैमर पई कहावति जड तिं, जाणुं अधोवृंत पडतई ताण अधोगतिनांहि । जे हमुपरि प्रभु आगलि पडिं रे हमपरि नही तस पीड । कुसुमपूजा कहइ सुख लहई, दिन दिन जस चढतई ॥२॥ मेह० ॥ हवइ कुसुममां जे भमर गुंजारव करे छई ते जांणीइं जड - कुसुमनी ९१. करी तो - ब. ९२. मलार- ब. । ९३. दरिसई ब. । ९४. प्रभुपूजा ब. । ९५. सुह फरस्यें ब. । ९६. समोसरणने विषें ब. ९७. भमर पई कहिवती जडती जे हमुपरें प्रभु आगलिं पडे रें । हम परिं नही तस पीड कुसुम पूजा कहे सुख लहै दिन दिन जस चडतें ॥२॥ मे० Jain Education International ब. । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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