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________________ अप्रिल-२००७ 61 कुसुम चंद्रोदय झूमक तोरण जालिक मंडप भागि । एकादशमी पूजा करतां अविचल पद भवि मागि ॥२॥ ते कुसुमना घरनी, चंद्रूआ-गोख-कुसुमना झूबकनां तोरण तथा कुसुमना जालियां क. कुसुमना मंडपना भाग मध्ये मध्ये गोखनी रचना देखीनई घणुं ज जीवने खुस्याली उपजई । जाली-मांडवो, तेनो भाग तें चोका देखीनइं खस्याल । एहवं फूलघरनी भावना श्रीजिनेश्वरनी । एम-एणे प्रकारइं इग्यारमी पूजा करतो भविक प्राणी अविचल जे मोक्षपद तेहनई जाणीइं स्वामी पाशें मागई छई, भविजन श्राविक-श्राविका ॥२॥ इति इग्यारमी पूजा कुसुमघरनी ॥११॥ एतलई इग्यारमी पूजा कुसुमना घरनी गीत सहित थई । हवें बारमी पूजा फुलहरई, कुसुमना मेघ वरसाववानी पूजा, ते मल्हार रागें कही छइं । पंच वर वर्णनो विबुध जिम कुसुमनो मेघ वरसई । भमर भमरीतणा युगल रसिया परिं त्रिजग हरसइं ॥१॥ राग मल्हारेण गीयते । वर-प्रधान पंचवर्णी जे विविध प्रकारनो मेघ वरसें फुलघरे । श्रीजिनेश्वर फूलघरे विरच्यां तिहां फुलनो मेघ वरसई । विबुध कहतां पंडितजन ते पणि भगवंत आगलि इमज कुसुमनो मेघ वरसावई । “जिम भमर--भमरीना युगल हर्ष पांमई गंध लेवाने तिम ते जिनपूजारसिक भव्य प्राणी श्री जिनेश्वरनी पूजाई खुसी थाइं । तीम ते त्रिण्य जगना लोक हर्ष पामई ॥ पगर जिम फूलनो पंचवरणे करी सुकृत तरसई । बारमी पूजमां हरखि" तिम जिम मिलई कनकपूरीसई ॥२॥ जिम पगर क. समुदाय फूलनो पंचवर्णनो करतां, पंचवर्णी फूल पगर भरई देवता, वली मनुष्य पूजई, इम सुकृतनइं जे भली करणी करतां तरसई छई उच्छाहसहित पांमे । इंम पणई मननें कहै छई : अरे मन ! ८७. फूलनों - ब. । ८८. तिम - ब. | ८९. खुशी ब. । ९०. हरखित तिम जिम मई कनकपूरीसरे ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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