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अनुसन्धान ३९
एतलई ए बीजी पूजा बावनाचंदनई विलेपननी थइ | बावनाचंदन भावनाई थइनई पूजो तें विलेपननी वात दृष्टान्त ॥२॥
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हवई त्रीजी पूजा चक्षु युगलनी कहे छें : राग - रामगिरी ॥
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तिमिर संकोचनां रयणना लोचनां इम कही जिन मुखि भविक थापो । केवलज्ञान में केवलदर्शन, लोचन दोय ए देव आपो ॥ १ ॥
तिमिर क० अज्ञाननई संकोचकारी क० टालणहार एहवां रत्नजडित लोचन प्रभूनां छई, इंम कहीनई प्रभुमुखई अरें भविक प्राणीओ ! भव्य जीवो! चक्षुयुगल जडावनां थापो । ते देखीनई तिहां सी भावना करइ ? प्रभु जिम तुह्मार अक्षय केवलज्ञांन १, अक्षय केवलदर्शन २, रूप ए बे लोचने करी सहित एहवो तूं छई, तिम ते लोचन अमनइ पणि हे देव ! आपों ।
ए भावना ॥ १ ॥
अथवा वली पाठांतरि त्रीजी पूजामां अंगलूणां २, तेहनी पूजा कहीं
छई :
अहव पाठंतरि त्रीजीय पूजामां, भुवन विरोचन जिनप आगई । देव चीवर समु वस्त्र युग पूजतां, सकल सुख स्वामिनी लील मागई ॥२॥ त्रिभुवननई विषइ - विरोचन कहतां सूर्य समान एहवा जिनप आगें कहतां जिनेश्वर आगई - आगलें देवचीवर कहतां देवताना वस्त्रयुगलने बे वस्त्रनी पूजा करतां ए भावना भावइ: सकल सुख जे मोक्षनां तेनी प्रभुतानी जे लीला, जन्म- जरा वीगर तेनी लीला, स्वांमी पासई मांगई छ जाणीइं ।
गीतं । राग- अधरस ||
रयण नयण करी दोय माणिक लेकें मेरे जिनमुखई दीजई । केवलज्ञान में केवलदरसन हमु परि कृपा करी प्रसाद कीजैं ॥१॥
ए त्रीजी पूजानुं अधरस रागें कहई छई गीत प्रतई । रयण क रत्नजडित नयण करी एतलई चक्षुयुगल, एहवां बें मांणिक ते लेइनई मेरे
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