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ओप्रिल-२००७
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करीय यक्षकर्दम अगर चूओ मर्दन, लेपो मेरे जगगुरु गात । हरि जिम मेरु परिं ऋषभकी पूजा कर,
देखावति कौतिक उर उर भाति ॥२॥ तिलक० ॥ ते यक्षकर्दम करीनइं अथवा ते यक्षकर्दम ते गोसीसचंदन, रक्तचंदन, रतांजणी प्रमुखनइ कहे छै । तथा अगर चूओ भेलो मर्दीनइं मर्दन करीनई, तेणें घोली करी । ते घोलन कचोलुं भरीने माहरो स्वामी-मारो जगगुरुजगतगुरु भगवाननुं गात्र ते शरीर लेपों पूजो, जिननई एतलें विलेपन करो। ते केहनी परि ? जिम हरि क० इंद्र चोसट्ठि मेरु उपरे-मेरु पर्वतने शिखरें ऋषभदेवनी पूजा करई, तें भाव आणीनइं । देखाडइ नवा कौतिक, भक्तिरचनानी विचित्रता नवनवी भांति विविध प्रकारनी रचना उर उर भांति-रचनाई करीनई ॥२॥ हम तुह्म तनुं लींप्यो तो ही भाव नही छीप्यो,
देखो प्रभु विलेपन की वात । हीरो हम ताप । एँ दूजी पूजा विलेपनकी,
और हरि दुरितकुं, शुचि कीनो गात ॥३॥ तिलक० हे प्रभो ! अह्मे तुम्हारुं तनुं क. शरीर चंदनादिकनें घोलें लीप्यो, ते स्यूं नवें अंगई तिलक कर्यु । अने वली तो ही प्रभु भाव नथी छीप्यो कहतां पूर्ण नथी थयो । उल्लास वधतो छइं तेह शो भाव थयो ? हे स्वामी ! अमें तुमें उल्लाश थइनें पूजो तें विलेपननी वात दृष्टान्त देखो प्रभु, ते जोओ स्वामिन् ! हरी क० टालो भवनां जे पातिक ते कर्म आठ तेनां जे पातिक, हम क० अम्हारो भवभवना कर्मनौ ताप हरो । तें बीजी पूजा विलेपननी । बीजुं वली भगवंतनुं हृदयस्थल लींपतां भवभवनां पातिक दुरितनइं हरि क० टालो, एम बीजी पूजाइं विलेपननें कहीनें आत्मास्युं शरीर मिलें शुचि-पवित्र कीधां। एवी रीतें वीतराग पूजें ते सुलभबोधी थाइं । ए गीत कह्यं ॥३॥ तिलक०॥
इति बीजी पूजा विलेपननी ॥२॥
१७. ए दुजी पूजा विलेपनकी अघहरि ताकुं शुचि कीनो गात ॥३|| ब.
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