SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओप्रिल-२००७ कहतां माहरा जिननें स्वामीनई मुखई दीजइं । ते ना(ने)त्र किहां ? केवलज्ञान ए पेहलुं नेत्र अनइं बीजं केवलदर्शन । ए बेऊ नेत्र, तेणइं हमुपरि क० अह्म ऊपरि कृपा करीने स्वामी ! तुमे ते बें नेत्र प्रसाद करीइं एतलें आपीइं मुझने ज्ञांन-दीवो ॥१॥ देवदूष्य वस्त्र सम वस्त्र जोडि लेकें, हवई त्रीजी पूजा कीजई । उपसम रस भरि नंयन कटोरडिं, देखि देखि जिन मुख रस पीजई ॥२॥ रय० । देवदूष्य वस्त्र सम क० देवदूष्य वस्त्र सरीखा बे वस्त्रनी जोडली करीनइं स्वामीनी त्रिजी पूजा कीजें । तां थकां उपसमतारसभर्या स्वामी सामु जोतां जोतां जिनरूपसुं जिनने अंग लुहो ए वस्त्रयुगल ते ए सुभ भावे करीनें पूजा कर । उपशम क. समतारसैं भरी नयनरूप कटोरी-कचोली तिणे करीने निरखें । अमृतलो ए पीजें । जोइ जोइ जिनमुखरूप सुधारस पीजीइं ॥२॥ एतलई ए भाव आपणें त्रीजी पूजा चक्षुयुगलनी तथा देवदूष्य वस्त्र बेनी तें अंगलूहणां २, तेनी पूजा ॥३॥ इति त्रीजी पूजा चक्षूयुगलनी ॥ हवें चोथी पूजा वासनी । राग-रामगिरीई कहे छई । राग-रामगिरी नंदनवनतणां बावनाचंदनां वासविधि चूरणां विरंचियां ए । जाइ मंदारस्युं शुद्ध घनसारस्युं सुरभि सम कुसुमस्युं चिरचिया ए ॥१॥ ___ नंदनवन, ते मांहि ऊपनां एहवा बावनाचंदन, तेहनां काष्ट आंणीने तेहनां चूरण कीधा ते वास । तें चूर्णादिकई करी, विधियुक्त नीपजाव्या एहवा उत्तम चूर्णनो जे वास तेणें, पूज्या । जाति-जायनां फूल, मंदार ते कल्पवृक्षनुं फूल, शुद्ध-निर्मल घनसा[राते बरास साथें भेलो कीधो, एहवां जे फूल, तेणें सुरभि-सुगंध कुसुमने संघातई विरचित-कीधो जे वास-परिमल वासना करतो, तेणें जिननें पूज्या ॥१॥ १८. वस्त्र जोडीनें- ब. । १९. भवन - ब. । २०. चिरचिआ ए, ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy