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जान्युआरी-2007
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माहिती-१
भारतीय योग परम्परा के परिप्रेक्ष्य में जैन योग विषयक त्रिदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का पहली
बार आयोजन भोगीलाल लहेरचंद भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर तथा श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में ७, ८ व ९ दिसम्बर २००६ को नई दिल्ली स्थित इण्डिया इन्टरनेशनल सेन्टर में भारतीय योग परम्परा के परिप्रेक्ष्य में जैन योग विषयक त्रिदिवसीय अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, इसमें देश-विदेश के ६० से अधिक विद्वान सम्मिलित हुए तथा २६ विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए. ७ दिसम्बर को कार्यक्रम का प्रारम्भ सुश्री दीपशिखा के द्वारा नवकार मन्त्र तथा मङ्गलाचरण से हुआ. मुख्य अतिथि स्वामी वेदभारती ने अपने अध्यक्षीय प्रवचन में कहा कि जैन योग भारत की अन्य परम्पराओं में अल्पश्रुत है अतः जैन योग की गौरवमयी परम्परा से इस संगोष्ठी के द्वारा हम परिचित हो सकेंगे. सुप्रसिद्ध समालोचक एवं साहित्यकार प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि प्राकृत भाषा की हमारे देश में बड़ी उपेक्षा हुई है जब कि विदेशों में लोगों का इस ओर बड़ा रुझान हैं. भारत की भाषा को ही भारत में आज लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता खड़ी हुई है।
संस्थान के अध्यक्ष श्री निर्मल भोगीलाल ने आधुनिक विश्व में व्यवसाय के क्षेत्र में भी योग के महत्त्व पर बल दिया. उपाध्यक्ष श्री नरेन्द्रप्रकाशजी जैन ने अभ्यागत विद्वानों का स्वागत किया तथा श्री प्रकाशचंद वडेरा, अध्यक्ष, नाकोडा तीर्थ ने नाकोडाजी ट्रस्ट द्वारा हो रहे शैक्षणिक तथा सामाजिक कार्यों का वृत्तान्त प्रस्तुत किया. आत्मवल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि के महासचिव श्रीराजकुमार जैन ने वल्लभ स्मारक परिसर में निधि द्वारा संचालित हो रही प्रवृत्तियों से उपस्थित महेमानों को परिचित करवाया.
प्रो. क्रिस्टोफर के. चैपेल ने अपने चाबीरूप प्रवचन में भारतीय योग परम्परा के परिप्रेक्ष्य में जैन योग का विस्तृत सर्वेक्षण प्रस्तुत किया. सर्वप्रथम आयोजित इस प्रकार की विशिष्ट संगोष्ठी का केन्द्रबिन्दु जैन योग तथा इसका अन्य परम्पराओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन था. इस संगोष्ठी में प्रमुख रूप
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