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________________ जान्युआरी-2007 विहंगावलोकन - उपा. भुवनचन्द्र 'अनुसन्धान'ना ३७मा अंकमां जैन श्रमणोनी प्रायश्चित्तविधिना सारसंक्षेप जेवी बे प्राकृत रचनाओ प्रसिद्ध थई छे. श्रमणसंघमां प्रायश्चित्तविधि केवी दृढमूल अने सुप्रथित हती तेनुं प्रतिबिम्ब आ रचनाओमां जोई शकाय छे. प्रथम कृति'पञ्चकपरिहाणि'-ना कर्ता गच्छपति आचार्य छे. विषय अने भाषा पर- प्रभुत्व तो नोंधपात्र छे ज, विशेष ध्यानार्ह तो छे कर्तानी निर्भार अभिव्यक्ति, प्रफुल्ल रसदृष्टि, प्रायश्चित्त जेवा विषंयनी काव्यात्मक रजुआत जे रीते आमां थई छे तेमां साधुहृदय अने कविहृदयनो मनोहर संयोग आपणने जोवा मळे छे. विधिनिषेधोथी रसिकता मुरझाई ज जाय एवो नियम नथी ए आनो सारांश. 'पञ्चकपरिहाणि'मां गा. २मां 'पंचगण०' छपायुं छे त्यां ण वधारानो छे - लिपिकार अथवा सम्पादकना हस्ते अनवधानवश प्रवेश्यो जणाय छे. गा. ११मां 'परिहाणी'ने बदले ‘पणिहाणी' लखायुं छे. वर्णसादृश्यना कारणे आवी गरबड़ो बोलवामां थती होय छे तेम, लखवामां पण थाय छे, तेनुं आ सरस उदाहरण छे. गा. ८मां 'समयरकटा' प्रेसदोषथी थयुं छे, मूळ शब्द 'समयक्खय' होवानो सम्भव. 'पञ्चकपरिहाणि' गोचरीना दोषोनी प्रायश्चित्तविधि जणावे छे. 'आलोचणाविहाण' हरेक प्रकारनी आलोयणा-प्रायश्चित्त-अंगेनी सामान्य विधि बतावे छे. सम्पादके नोंध्युं छे के हस्तप्रतमां आ बे कृतिनी साथे प्रायश्चित्तोनी छूटक नोंधो पण छे. आना परथी कल्पना एवी पण आवे के कोई विद्वान गीतार्थ मुनिवरे आलोचना सम्बन्धित साहित्य एकत्र कर्य होय. .. ___आठ भाषाओमां रचायेल नवफणा पार्श्वनाथ स्तोत्र भक्तिरस अने काव्यरस बन्नेथी परिपूर्ण अने विद्वत्ताथी विभूषित रचना छे. मागधीभाषाना श्लोकोनो छन्द मालिनी ज छे, मात्र तेमां एक यगणना छेल्ला गुरुवर्णनी जग्याए बे हुस्व-लघु वर्ण प्रयोजाया छे. मात्रा मेळ छन्दोनी परम्परा आ रीते ज शरू थई हशे ने ? श्लोक ९ नुं चोथु चरण आ रीते वांचवाथी अर्थ बेसी शके छे: दुक्खा उ किं न भुजगं व समुद्धरेसि. श्लोक. २४ मां 'कट्ठउ' मां उ वधारानो जणाय छे. 'हयाटाखाट' काव्य कौतुक ऊपजावनारुं छे. संस्कृत भाषानी शब्दसर्जनक्षमतानो श्रेष्ठ नमूनो गणावी शकाय एवं काव्य छे. 'सूक्तिद्वात्रिंशिका' एक रसप्रद कृति छे. सम्पादके आनी भाषा अपभ्रंशप्रधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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