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अनुसन्धान-३८
साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृष्ठ ५६३ पैरा नं. ८२१ में लिखा है :'धर्मसागरजी खंभात मा संवत् १६५३ कार्तिक सुद ९ ने दिने स्वर्गवास पाम्या ।'
जबकि योगनिष्ठ स्व. श्री बुद्धिसागरसूरिजी महाराज, स्व. श्री मोतीचन्द गिरधर कापड़िया तथा स्व. श्री नाहटा जी ने आनन्दघनजी का समय १६५० से १७३१ तक का माना है । अत: दोनों के समय में व्यवधान पैदा होता
यदि हम पूज्य शासन सम्राट के कथन को स्वीकार करें तब किसी अन्य धर्मसागर की खोज करनी होगी जो कि उस समय में उपलब्ध नहीं थे । अतः सम्पादक के लेखानुसार इसे दन्तकथा या श्रुति-परम्परागत स्वीकार करना ही अधिक उपयुक्त होगा, पाठक स्वयं निर्णय करें । तत्त्वं तु गीतार्थगम्यम् अथवा सुज्ञेषु किं बहुना ।
ठि. प्राकृत भारती १३-A, मेन मालवीय नगर
जयपुर (राजस्थान)
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