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अनुसन्धान-३८
कलकत्ता में प्रौढ़ विद्वानों में स्थान था ।
चारित्रनन्दी के शिष्य चिदानन्द प्रथम थे । जिनका प्रसिद्ध नाम कपूरचन्द था । वे क्रियोद्धार पर संविग्नपक्षीय साधु बन गए थे और उनका विचरण क्षेत्र अधिकांशतः गुजरात ही रहा । चिदानन्दजी प्रथम अच्छे विद्वान् थे अध्यात्म ज्ञानी थे और उन्हीं पर उनकी रचनाएं होती थी। उनकी लघु रचनाओं बहोतरी का संग्रह भी चिदानन्द (कर्पूरचन्द्रजी) कृत पद संग्रह (सर्व संग्रह) भाग १ एवं २ जो कि श्री बुद्धि-वृद्धि कर्पूरग्रन्थमाला की
ओर से शा. कुंवरजी आनंदजी भावनगर वालों की ओर से संवत् १९९२ में प्रकाशित हुआ है । चिदानन्दजी प्रथम द्वारा निर्मित साहित्य के लिए देखें खरतरगच्छ साहित्य कोश ।
चारित्रनन्दी का बाल्यावस्था का नाम चुन्नीलाल होना चाहिए । काशी में इनका उपाश्रय ज्ञानभण्डार भी था । जो चुन्नीजी के नाम से चुन्नीजी महाराज का उपाश्रय एवं भण्डार कहलाता था । चारित्रनन्दी के पश्चात् परम्परा न चलने से उस चुन्नीजी के भण्डार को तपागच्छाचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजी महाराज काशी वालों ने प्राप्त किया और उसे आगरा में विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर के नाम से स्थापित किया। प्रसिद्ध तपागच्छाचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी महाराज ने प्रयत्नों से उस विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर, आगरा की शास्त्रीय सम्पत्ति को भी प्राप्त कर लिया जो आज श्री कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा को सुशोभित कर रहा है ।
(३)
कल्याणचन्द्रगणि ___ मुनि श्री कल्याणकीर्तिविजयजी ने अनुसन्धान अंक ३७, पृष्ठ १० से १५ तक श्री नवफणापार्श्वनाथस्तव के नाम से एक दुर्लभ एवं अप्रकाशित कृति का सम्पादन कर प्रशस्य कार्य किया है । इस कृति से सम्बन्धित मन्दिर, स्तव, कीर्तिरत्न और कल्याणचन्द्र के सम्बन्ध में जो भी ऐतिह्य सामग्री प्राप्त है, वह निम्न है :
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