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अनुसन्धान-३८
पंचज्ञान पूजा रचना प्रशस्ति में लिखा है :खरतरपति जिनसिंहपटधार श्री जिनराजसूरिंद सुखकार । भ० ६ तसु पदपंकज मधुप सुशिष्य पाठक रामविजय गुणमुख्य । भ० ७ तसु शिष्य वरवाचकश्री पद्म-हरख हरखधर शिवसुखसद्म । भ० ८ तसु वैनेय पाठकपदधार सुखनंदन गुणमणिभंडार । भ० ९ तसुपद कनकसागर अभिधान पाठकपदधारक सुविहान । भ० १० तसुपद सरकजहंससमान पाठक महिमतिलक गुणखान । भ० ११ कुमरुत्तर तसु उभय सुशिष्य चित्रलबधि पंडितजनमुख्य । भ० १२ तसृशिष्य निधिउदयगणि जाणि गुरुपदकजमकरं समान । भ० १३ तासुशिष्य वर चारित्रनन्द पणनाणस्तुति रचि आनंद । भ० १४
इसमें अपनी परम्परा जिनसिंहसूरि से ही प्रारम्भ की है । सुखनन्दन के बाद कनकसागर का नाम दिया है और चित्रकुमार तथा लब्धिकुमार को गुरु भ्राता लिखा है ।
इक्कीस प्रकारी पूजा की रचना प्रशस्ति में लिखा है :गच्छेशसत्खरतराह्वयगच्छसिद्धः भव्यान्जकाननमलंकृतभानुरूपः । आचारपञ्चशुभपालनसावधानो सूरीन्द्रराजजिनराजमभूत्प्रसिद्धः ॥२॥ वादीन्द्रवृन्दघटमुगरतुल्यभावं तच्छिष्यरामविजयो वरवाचकोऽभूत् । सिद्धान्ततत्त्वसद्भावितधीप्रचण्डस्तच्छिष्यवाचकवरोऽभूत्पाहर्षः ॥३॥ जैनेन्द्रशासनप्रकाशकचन्द्रतुल्यस्तच्छिष्यवाचकवरो सुखनन्दनोऽभूत् । श्रीपाठकः कनकसागर तस्य शिष्योऽभूद्रव्यपङ्कजसमूहविबोधभानुः ।।४।। सद्वाचकोऽग्रतिलको महिमाभिधानोऽभूद्दीक्षितौ प्रवचनाष्टसुमातृचारिः। जैनेन्द्रशासनविभासकचन्द्रतुल्यौ शिष्यावभूत्सुकुमरुत्तरलब्धिचित्रौ ।।५।। शौण्डीर्यधैर्यगुणरत्नकरण्डकेयस्तच्छिष्यनिद्धिउदयाह्वयभू जयन्तु । चारित्रनन्दिविनयेन विनिर्मितेयं अर्हत्सुनेमिदिवसेषु धृतिग्रहेषुः ॥६॥ __इस प्रशस्ति में जिनराजसूरि से अपनी परम्परा प्रारम्भ की है । इसमें भी सुखनन्दन के बाद कनकसागर का नाम दिया गया है । चित्रकुमार और लब्धिकुमार को गुरुभ्राता लिखता है ।
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