________________
59
जान्युआरी-2007 इसके अनुसार पूर्व गुरु परम्परा इस प्रकार बनती है :
जिनसिंहसूरि (युग. जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर)
जिनराजसूरि
उ. रामविजय
उ. पद्महर्ष (संविग्न)
उ. सुखनन्दन
उ. महिमतिलक
उ. चित्रकुमार
उ. निधिउदय
उ. चारित्रनन्दी इस चतुर्दश पूर्व पूजा में उल्लेखित सुखनन्दन और महिमतिलक के बीच में कनककुमार का नाम नहीं मिलता है।
पंचकल्याण पूजा रजना प्रशस्ति में इस प्रकार उल्लेख है :- . तसु आज्ञायें भगति उदार स्तुति कल्याणक संघ हितकार । भ० १० ग्याननिधिगुणमणिभंडार महिमतिलक पाठक सुखकार । भ० ११ ततपंकज मधुकर सुखपीन चित्रकुमर लबधी गुणलीन । भ० १२ ततपद निधिउदयज भांन जिनआज्ञाप्रतिपालक जांन । भ० १३ भावनन्दी गुरुपदअनुरक्त भ्रातृ चारित्रनंद कीधी जिनभक्ति । भ० १४
इसमें महिमतिलक के बाद की ही गुरु परम्परा दी है और भावनन्दी को अपना गुरुभ्राता बतलाया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org